पिछले तीन वर्ष आर्थिक मोर्चे पर विशेष रूप से पूरे विश्व के लिए बहुत चुनौती वाले वर्ष थे।
पूरे विश्व में आर्थिक विकास में धीमेपन का दौर था, और जब दुनिया में धीमेपन का दौर होता है तो स्वाभाविक है कि सब देशों पर उसका प्रभाव पड़ता है। विश्व भर में विदेश व्यापार भी घटा, जिसका असर किसी भी अर्थव्यवस्था के निर्यात पर पड़ता है। पूरे विश्व में जो बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ थीं, उनमें संरक्षणवाद की आवाजें तेज हुईं, और कई प्रकार की भू-राजनयिक अनिश्चितताएँ थीं। इसके साथ-साथ तीन वर्ष पहले अपने देश की जो स्थिति थी, उसमें नीतिगत सुधारों और संरचनात्मक बदलावों में भी एक धीमापन आया हुआ था। पूरे विश्व भर में हमारी अर्थव्यवस्था का जो संदर्भ था, वह भी कमजोर था। भारत वैश्विक मंच पर रेडार में नहीं था। पिछले तीन वर्षों में से दो वर्ष मॉनसून भी खराब था, कम बरसात हुई थी। जो व्यवस्था विरासत में मिली थी, उसकी विश्वसनीयता कमजोर हो चुकी थी, विशेष रूप से भ्रष्टाचार और अनिर्णय के कारण।
पूरे विश्व और देश की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अगर पिछले तीन वर्ष हम देखते हैं, तो इसमें जो कुछ विशेष बातें थीं, कि इन तीन वर्षों में एक बार फिर अपने देश की अर्थव्यवस्था की विश्वसनीयता दोबारा स्थापित हुई पूरी दुनिया में। इसमें तीन चीजों ने विशेष रूप से अपना प्रभाव छोड़ा है। पहली चीज है निर्णयशीलता - निर्णय लेने की क्षमता और कठिन निर्णय लेने की भी क्षमता। दूसरी चीज यह है कि वैसी व्यवस्थाएँ, जिनकी वजह से भ्रष्टाचार होता था, उन्हें बदलना। उसमें विशेष रूप से सरकारी स्वेच्छा को जहाँ तक समाप्त किया जा सकता है, वहाँ तक समाप्त किया जाये आर्थिक विषयों में। बाजार प्रणाली पर निर्भर किया जाये, जिससे पारदर्शिता आयी, विवाद भी समाप्त हुए और कहीं भी भ्रष्टाचार होने की संभावना भी अपने-आप में समाप्त हो गयी। तीसरी बात यह कि निर्णय-प्रक्रिया की दिशा एकदम स्पष्ट थी। ऐसी नीतियाँ ली जायें, जिनमें अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ सके, और उस बढ़ी हुई विकास दर का लाभ हम देश के कमजोर, गरीब वर्ग तक पहुँचाया जा सके।
भारत एफडीआई में अग्रणी बना
मैं इस दिशा में हुए सारे सुधारों को नहीं गिना रहा हूँ। लेकिन जिनका पूरी अर्थव्यवस्था पर एक प्रभाव हुआ (उनका जिक्र करता हूँ)। एफडीआई सुधारों का बहुत बड़ा प्रभाव हुआ। लगातार दो वर्ष हम विश्व में एफडीआई पाने वाला सबसे बड़ा देश बने। उस परिस्थिति में, जहाँ निजी व्यय (प्राइवेट स्पेंडिंग) कमजोर थी, सरकारी व्यय (पब्लिक स्पेंडिंग) के साथ-साथ एफडीआई की एक बहुत बड़ी भूमिका निवेश चक्र को बरकरार रखने में रही है।
भ्रष्टाचार-मुक्त पारदर्शी निर्णय
दूसरा एक बड़ा सुधार यह हुआ कि अर्थव्यवस्था की विश्वसनीयता फिर स्थापित करने और देश की यह छवि बनाने के लिए कि यहाँ भ्रष्टाचार नहीं होता, उसमें पारदर्शी निर्णय-प्रक्रिया को लाया गया और हर तरह की स्वैच्छिकता को खत्म किया गया। हमने स्पेक्ट्रम, खनन, कोयला आदि में यह प्रयास किया और जितने भी सरकारी लाभ लोगों तक पहुँच सकते थे, विशेष रूप से आर्थिक जगत और उद्योग में, उन सबको बाजार प्रणाली के माध्यम से दिया, यानी कौन सफल पक्ष होगा यह भी बाजार प्रणाली तय करेगी। किस दाम पर होगा, यह भी बाजार प्रणाली से तय होगा।
जीएसटी बहुत बड़ा कर सुधार
राज्यों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को हमने लागू किया। आज राज्यों के हाथ में बहुत बड़े साधन हैं, उनमें एकदम 10% की वृद्धि हुई। इस देश में पहली बार अप्रत्यक्ष कर में एक संघीय कर प्रणाली और एक संघीय संस्था का निर्माण करके एक आम राय के साथ जीएसटी लागू करने की प्रक्रिया को हम लोग काफी हद तक आगे ले गये हैं। अब वह अपने अंतिम चरण में है। जब यह लागू होगा तो देश के अंदर एक बहुत बड़ा कर संबंधी सुधार होगा।
रिसाव रोक कर संसाधन बचाये
जो जैम ट्रिनिटी (जन-धन, आधार, मोबाइल) है, आधार का कानून पास करना, और सरकारी लाभ किसको मिलेगा यह प्रक्रिया कई क्षेत्रों में हम लोगों ने लागू कर दी है, जिससे साधन भी बचे हैं। हमने बहुत मूल्यवान संसाधन बचाये हैं, और इससे हमें ऐसे लोगों को भी अलग करने में मदद मिली है जो उन लाभों के पात्र नहीं हैं। जो रिसाव थे, वे बंद कर दिये गये हैं।
अब नकद लेन-देन सुरक्षित नहीं
विमुद्रीकरण के माध्यम से अर्थव्यवस्था में सरकार ने एक नव-सामान्य (न्यू नॉर्मल) परिस्थिति तैयार की। हमने एक बहुत बड़ी नकद अर्थव्यवस्था, जिसमें समानांतर अर्थव्यवस्था या काली अर्थव्यवस्था की बिना किसी जवाबदेही वाली जो व्यवस्था थी, उसे समाप्त करने का एक बहुत बड़ा कदम उठाया। इसके तीन स्वाभाविक लाभ हुए हैं। पहला, डिजिटाइजेशन की ओर रुझान पहले से ज्यादा बढ़ा है। दूसरा, करदाताओं की संख्या भी बढ़ी है। और यह बात इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि वर्ष 2016-17 में अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद तमाम चुनौतियों के होते हुए भी राजस्व (रेवेन्यू) वृद्धि दर 18% रही है। ये तीन वर्ष (इस सरकार के) आरंभ होने पर पहले वर्ष में राजस्व वृद्धि 9.4% थी। दूसरे वर्ष में यह 17% और तीसरे वर्ष में 18% रही। इसके लाभ कमजोर वर्गों तक जा सकें, इसके लिए ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण सड़कें, शौचालय, बैंक खाते, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), बुनियादी ढाँचा निर्माण में सुधार आदि का प्रयास रहा है।
तीसरा, सबको यह संदेश बहुत साफ और जोर से पहुँचा है, और लगभग हर दिन जा रहा है कि अब नकदी में लेन-देन करना सुरक्षित नहीं है। इसी के साथ-साथ हमने जितने कदम उठाये हैं ऑपरेशन क्लीन मनी के लिए, उन सबके चलते भारत में एक नव-सामान्य परिस्थिति बन रही है। मौद्रिक नीति समिति का गठन और दिवालियापन कोड जैसी तमाम बातें अर्थव्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन लाने वाली हैं।
चुनौतियों पर सजग सरकार
कुछ चुनौतियाँ भी रही हैं, और हम उनके बारे में सजग हैं। बैंकिंग एनपीए के समाधान का काम अब भी जारी है। यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इसका असर विकास को सहारा देने के लिए बैंकिंग प्रणाली की क्षमता पर भी पड़ता है। इसी से जुड़ी एक चुनौती है निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना, हालाँकि एफडीआई और सरकारी निवेश में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। बेशक, वैश्विक स्थिति से मदद मिल रही है या बाधा, इसका भी एक खास असर होता है।
(निवेश मंथन, जून 2017)