प्रणव :
इसके लिए सरकार ने पिछले साल राष्ट्रीय नागर विमानन नीति में क्षेत्रीय संपर्क योजना या रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम (आरसीएस) का प्रावधान किया था।
काफी शोरशराबे के साथ शुरू की गयी इस योजना के जरिये एक साथ कई मकसद पूरे होने की संभावना जतायी जा रही है।
किराये पर अंकुश
इसके जरिये छोटे-छोटे शहरों के बीच हवाई यातायात शुरू करने की बात हो रही है। कम दूरी की यात्रा के लिए हवाई किराये को तार्किक बनाया जा रहा है, ताकि विमान यात्रा आम लोगों के लिए भी किफायती बन सके। इन दोनों बातों के बीच भी एक खास संबंध है। असल में छोटे शहरों में लोगों के पास डिस्पॉजिबल इन्कम यानी खर्च करने योग्य आमदनी उतनी नहीं होती, लिहाजा वहाँ लोग कीमतों को लेकर खासे संवेदनशील होते हैं। इसीलिए सरकार ने 500 किलोमीटर तक की दूरी या एक घंटे की अवधि वाली विमान यात्रा के लिए 2,500 रुपये का अधिकतम किराया तय किया है। शुरुआती दौर में इसके लिए 128 यात्रा मार्गों का चयन किया गया है और 5 कंपनियों को ही इस योजना के साथ जोड़ा गया है।
देश में तकरीबन 40 से अधिक हवाई अड्डे हैं, जो फिलहाल सेवा में नहीं हैं। उड़ान के जरिये उनका कायाकल्प कर उन्हें उपयोग में लाने की तैयारी की जा रही है। इन हवाई अड्डों को एयर नेटवर्क के तहत जोड़ा जायेगा। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने इसके लिए फिलहाल 27 सेवारत हवाई अड्डों से संचालन के प्रस्ताव पर ही मुहर लगायी है। चरणबद्ध रूप में बाकी हवाई अड्डों से भी सेवाओं की शुरुआत की जायेगी। अभी जिन 27 हवाई अड्डों से इस योजना की शुरुआत होने जा रही है, उसके माध्यम से देश के 22 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों के बीच हवाई संपर्क बेहतर होगा।
कुछ जानकार किराये की सीमा तय करने को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। उनकी दलील है कि मुक्त बाजार वाली व्यवस्था में किराया निर्धारण केवल कंपनियों के अधिकार क्षेत्र में रहना चाहिए। वैसे किराये को लेकर सरकारी निर्देश की पोल पहले ही दिन खुल गयी, जब दिल्ली और शिमला के बीच उड़ान का किराया आसमान पर पहुँच गया। इसमें दिल्ली-शिमला उड़ान का किराया 2,500 रुपये की तुलना में 6 गुने से भी ज्यादा बढ़ कर 16,000 रुपये तक पहुँच गया, जिस पर लोगों ने प्रधानमंत्री कार्यालय के ट्विटर हैंडल पर शिकायत भी दर्ज करायी।
इस योजना के लिए 19 से 78 यात्रियों की क्षमता वाले विमानों का चयन किया गया है, जिसमें से आधी सीटें विमानन कंपनियों को 2,500 रुपये या इससे कम दर पर पेश करनी होंगी। शुरुआती दौर में अलायंस एयर, स्पाइसजेट, एयर डेक्डन, एयर ओडिशा और टर्बो मेघा एयरवेज जैसी पाँच कंपनियाँ ही इससे जुड़ी हैं।
आगे की राह
भारतीय विमानन क्षेत्र में इस योजना को ‘ओपन स्काई पॉलिसी’ के बाद सबसे अहम पड़ाव माना जा रहा है। मगर इसकी सफलता दो निर्णायक पहलुओं से तय होगी। पहला पहलू कंपनियों की नीयत या मंशा का है तो दूसरे का संबंध ग्राहकों से मिलने वाली प्रतिक्रिया से है। लंबे अरसे तक बुरा वक्त देखने के बाद अब जाकर विमानन कंपनियों के कुछ ‘अच्छे दिन’ आये हैं। इसमें भी कच्चे तेल की कीमतों में आयी गिरावट की अहम भूमिका रही है, जिससे विमान ईंधन के दाम काफी कम हुए हैं। विमानन कंपनियों की लागत में 35% से अधिक हिस्सा विमान ईंधन का ही होता है। लागत घटने से किराये की दरें भी कम हुई हैं, जिससे हवाई यातायात यानी विमान यात्रियों की संख्या में खासी तेजी आयी है।
इससे कई कंपनियों के बही-खातों की खराब हालत सुधार की राह पर बढ़ी है। मगर कच्चे तेल की कीमतों के फिर से ऊपर चढऩे की सूरत में कंपनियों के लिए बनी फायदे की यह स्थिति भी पलट जायेगी। ऐसे में ‘उड़ान’ को परवान चढ़ाने से पहले ये कंपनियाँ अपने लिए सतत रूप से फायदेमंद किसी ठोस योजना को आकार देने को तरजीह देंगी।
‘बहुत सफल रहेगी यह योजना’
यह बहुत अच्छी योजना है और बहुत सफल होगी। हमारे देश में हवाई-पट्टियों की संख्या लगभग 400 है, जिनमें से 100 से भी कम चालू हालत में हैं। इन हवाई-पट्टियों को चालू करने पर जहाँ-जहाँ हवाई संपर्क शुरू होगा, वहाँ पर्यटन बढ़ेगा। इससे व्यापार और अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिलेगा। देश के बहुत-से हिस्से हैं, जैसे उत्तर-पूर्व में छोटी-छोटी दूरी भी सड़क से तय करने में बहुत लंबा समय लग जाता है। या फिर, राजस्थान के विभिन्न शहरों को जोडऩे में इससे बहुत मदद मिलेगी।
सुभाष गोयल, चेयरमैन, स्टिक ट्रैवल्स
(निवेश मंथन, मई 2017)