राजेश रपरिया :
खेती के बाद निर्माण (कंस्ट्रक्शन) उद्योग देश को सर्वाधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र है।
बुनियादी ढाँचा, जैसे सड़क, पुल, बंदरगाह आदि, व्यावसायिक भवन और आवास निर्माण इस उद्योग में आते हैं। पर इस उद्योग में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी आवास निर्माण की है। इसके योगदान का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश में उत्पादित कुल सीमेंट की 60-70% खपत आवास निर्माण क्षेत्र में ही होती है। अकुशल मजदूरों को सर्वाधिक रोजगार भी आवास निर्माण से ही मिलता है।
मोदी सरकार ने पिछले तीन सालों में बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ाया है। साथ ही आवास निर्माण में तेजी लाने के लिए भी सरकारी प्रयास हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक सबको मकान देने का लक्ष्य रखा है। आवास निर्माण के लिए पिछले तीन सालों में केंद्रीय बजट में इस मद का आवंटन भी बढ़ाया गया है। इसके बावजूद आवास निर्माण में कोई अपेक्षित तेजी नहीं आयी थी।
पर बजट 2017 में मोदी सरकार ने कई ऐसे कदम उठाये हैं, जिनसे आने वाले दिनों में आवास निर्माण तेज रफ्तार पकड़ सकता है। एचडीएफसी के प्रमुख दीपक पारेख इन कदमों से गदगद हैं। उनका कहना है कि आवास निर्माण के लिए मोदी जैसी पहल किसी ने भी नहीं की। इनका प्रभाव आना तयशुदा है। यह निर्विवाद तथ्य है कि निर्माण उद्योग, विशेषकर आवास निर्माण सुस्त अर्थव्यवस्था में जान फूँकने का सबसे सशक्त और सिद्ध उपाय है।
11 करोड़ मकानों की दरकार
फिलवक्त देश में हर किसी को पक्की छत मुहैया कराने के लिए छह करोड़ मकानों की कमी है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से वर्ष 2022 तक हर किसी को पक्की छत मुहैया कराने के लिए 11 करोड़ मकानों की दरकार होगी। वैश्विक सलाहकार संस्था केपीएमजी के एक अध्ययन (2014) के अनुसार अभी शहरों में 1.9 करोड़ और ग्रामीण भारत में 3.90 करोड़ मकानों की कमी है। साल 2022 तक शहरों में 2.6 से 2.9 करोड़ और नये मकानों की जरूरत होगी। ग्रामीण भारत में भी 2.3 से 2.5 करोड़ और मकानों की दरकार बढ़ जायेगी। यानी 2022 तक कुल मिला कर शहरों में 4.4 से 4.8 करोड़ और गांवों में 6.3 से 6.5 करोड़ मकानों की जरूरत होगी।
वर्ष 2022 तक केवल उत्तर प्रदेश में ही दो करोड़ और महाराष्ट्र में 1.04 करोड़ मकानों की दरकार होगी। गौरतलब है कि आने वाले समय में गाँवों की बजाय शहरों में मकानों की आवश्यकता ज्यादा होगी। शहरों में मकान की लागत गाँवों की अपेक्षा ज्यादा है। जाहिर है कि आने वाले समय में हर किसी को पुख्ता छत मुहैया कराने के लिए मौजूदा स्तर से दोगुने से ज्यादा निवेश की आवश्यकता होगी।
केपीएमजी की इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा जरूरत सस्ते (अफोर्डेबल) मकानों की है। मूलत: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) और निम्न आय समूह (एलआईजी) की श्रेणियों के मकान सस्ते मकानों में गिने जाते हैं। आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने वर्ष 2012 में एक अध्ययन कराया था, जिसके अनुसार तकरीबन 58% जरूरत ईडब्लूएस मकानों की है, और 39.44% जरूरत एलआईजी मकानों की। मध्यम आय समूह (एमआईजी) और उच्च आय समूह (एचआईजी) में मकानों की जरूरत महज 4.38% है। सस्ते मकानों की माँग भी ज्यादा है और जरूरत भी। फिर भी उनकी आपूर्ति में इतना विशालकाय अंतर का होना कोई गूढ़ रहस्य नहीं है। सस्ते मकानों में लाभप्रदता कम होने के कारण निजी क्षेत्र के डेवलपरों की इन्हें बनाने में कोई रुचि नहीं है। लिहाजा सस्ते मकान बनाने और उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी पूरी तरह केंद्र और राज्य सरकारों पर आ जाती है।
ऐसा भी नहीं है कि सस्ते मकान मुहैया कराने के लिए सरकारों ने कोई कोशिश नहीं की हो। वर्ष 1985 से गाँवों में पक्के मकान मुहैया कराने के लिए इंदिरा आवास योजना शुरू की गयी, जिसके तहत अब तक 3.25 करोड़ मकान मुहैया कराये गये हैं। लेकिन गाँवों में इन मकानों की जरूरत और आपूर्ति का अंतर बढ़ता ही गया। 1990 के दशक में शहरों में सस्ते मकान उपलब्ध कराने के लिए राजीव आवास योजना शुरू की गयी। पर इसमें कोई कारगर सफलता हासिल नहीं हुई, क्योंकि यह योजना पूर्णत: सरकारी निधि पर आधारित थी और सरकारें इस योजना के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराने में विफल रहीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2022 तक हर किसी को मकान मुहैया कराने के लिए ‘हाउसिंग फॉर ऑल’ का अभियान शुरू किया है। यह काफी महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत शहरों में वर्ष 2022 तक दो करोड़ सस्ते मकान बनाये जाने हैं। गाँवों में 2019 तक इस योजना के तहत एक करोड़ पक्के मकान बनाने का लक्ष्य मोदी सरकार ने रखा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2014 में अपने बजट भाषण में कहा था कि देश में 6 करोड़ मकानों की जरूरत है और सरकार इस जरूरत को पूरा करने का प्रयास करेगी।
मोदी सरकार ने सभी को मकान मुहैया कराने के अपने अभियान को ज्यादा मुकम्मल बनाया है। इंदिरा आवास योजना और राजीव आवास योजना का विलय प्रधानमंत्री आवास योजना में कर दिया गया है। गाँवों के लिए अब प्रधानमंत्री आवास योजना - ग्रामीण है। इस योजना को पहले से अधिक समग्र और बेहतर बनाया गया है। इस योजना में मकान का क्षेत्रफल बढ़ाया गया है। इसमें स्नानघर, शौचालय, बिजली और रसोई गैस की सुविधाएँ शामिल की गयी हैं, जो इंदिरा आवास योजना में नहीं थीं। इसके अलावा आर्थिक सहायता में भी भारी वृद्धि की गयी है।
मोटा अनुमान है कि गाँवों में दो करोड़ मकान बनाने में आर्थिक सहायता देने के लिए 2.60 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी, यानी 2016 से 2022 के बीच हर साल तकरीबन 44,000 करोड़ रुपये। फिलहाल केंद्र सरकार ने गाँवों में 2016-19 के तीन सालों में एक करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए पर्याप्त बजट आवंटन बढ़ाया गया है, यानी इस लक्ष्य को पूरा करने में पैसे की कोई अड़चन आड़े नहीं आयेगी।
शहरों में सस्ते मकान की आपूर्ति बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने बजट 2017 में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। सस्ते आवास निर्माण को बुनियादी उद्योग का दर्जा दिया गया है। इस निर्णय से डेवलपरों को कम ब्याज दरों पर कर्ज मिलने में भारी मदद मिलेगी। अब तक डेवलपरों की 14-15% ब्याज दर ही कर्ज मिल पाता था। लेकिन अब उम्मीद है कि उन्हें 11-12% ब्याज दर पर कर्ज मिल सकेगा। इससे सस्ते मकानों की लागत में कमी आयेगी। सस्ते मकानों की बढ़ती लागत एक बड़ी समस्या है। सस्ते आवास निर्माण में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी का मार्ग सुगम हो गया है। सरकारी आर्थिक सहायता भी निजी क्षेत्र की भागीदारी पर मिलेगी। ज्वाइंट डेवलपमेंट में एग्रीमेंट की शुरुआत में ही कर चुकाया जाता था, जो अब परियोजना पूरी होने पर देय होगा। इस निर्णय से मकान की लागत में कमी आयेगी।
इसके अलावा सस्ते मकान के निर्माण में हुए लाभ को कर मुक्त कर दिया गया है। इस कदम से कई बड़ी कंपनियाँ इस क्षेत्र में आ सकती हैं। पूँजीगत लाभ की गणना के लिए भी अवधि तीन साल से घटा कर दो साल कर दी गयी है। इससे आवास इन्वेंटरी पर अनावश्यक कर देने से निर्माता बच जायेंगे। ग्राहकों के लिए कर्ज अवधि को 15 साल से बढ़ा कर 20 साल कर दिया गया है। इससे कर्ज की मासिक किस्त कम होगी, जिससे निम्न आय और निर्धन वर्ग के लोगों की आर्थिक दिक्कतें कम होना लाजिमी है। सरकारी आर्थिक सहायता के बाद मासिक किस्त का बोझ और कम हो जायेगा। मोदी सरकार ने मध्य वर्ग को भी फिलहाल एक साल के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में शामिल कर दिया है। केंद्र सरकार और निर्माताओं को पूरी उम्मीद है कि इन नये कदमों से शहरी आवास निर्माण में तेजी आयेगी, जो अरसे से सुस्ती का शिकार है।
जमीन कैसे मिले?
केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 तक शहरों को छह करोड़ आवास निर्माण के लिए 1.7 से 2.0 लाख हेक्टेयर जमीन की दरकार होगी। इसमें 4 करोड़ सस्ते मकान बनाने के लिए तकरीबन 95,000 हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी। यह जमीन उपलब्ध कराना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। पर हकीकत यह है कि सस्ते मकानों के लिए जमीन की उपलब्धता अब भी सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आवासों को बहुत दूर बनाया जाता है। इससे उनका उद्देश्य ही विफल हो जाता है। मसलन मुंबई में सस्ते मकान 50-60 किलोमीटर दूर बनाये जा रहे हैं, तो दिल्ली-एनसीआर में यह दूरी 25-30 किलोमीटर है।
हो सकता है कायापलट
यदि प्रधानमंत्री आवास योजना, विशेष कर शहरी योजना जमीन पर अपना रंग दिखाती है तो इससे अर्थव्यवस्था का कायापलट हो सकता है। अभी 7.5% आर्थिक विकास दर आते-आते दम फूल जाता है। रोजगार के नये अवसरों का अर्थव्यवस्था में भारी अभाव है। मौजूदा रोजगार पर संकट गहरा रहा है। आईटी उद्योग में हजारों लोग रोजगार खोने पर विवश हैं। नये रोजगार में पगार या तो स्थिर है या घट रही है। दूसरी ओर हर अर्थव्यवस्था में आवास निर्माण को अर्थव्यवस्था के लिए गुणकारी माना जाता है। इसलिए अगर आवास निर्माण क्षेत्र में अपेक्षित रफ्तार आती है, तो सरकार को अनेक तोहमतों से छुटकारा मिल जायेगा।
केपीएमजी के अनुसार अभी हर साल 110-120 अरब डॉलर का निवेश आवास निर्माण में होता है। इसमें 5-6 अरब डॉलर की हिस्सेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है। केंद्र और राज्य सरकारों को अगर आवास क्षेत्र में वर्ष 2022 तक सरकारी लक्ष्यों को पूरा करना है, तो उनका निवेश बढऩा तय है, जिसके संकेत केंद्र सरकार के बजट आवंटन में साफ देखे जा सकते हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 तक 11 करोड़ मकान की जरूरत पूरी करने के लिए तकरीबन 2 लाख करोड़ डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। यानी हर साल तकरीबन 250-260 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी, जो मौजूदा निवेश स्तर के दोगुने से अधिक है। आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार आवास निर्माण में निवेश का अर्थव्यवस्था पर चौतरफा प्रभाव पड़ता है। आवास निर्माण में होने वाले निवेश का अर्थव्यवस्था पर असर बहुत तेजी से होता है और व्यापक भी। इस रिपोर्ट में अनेक गुणकों के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले प्रभावों को विस्तार से बताया गया है।
इसके अनुसार आवास निर्माण में एक लाख रुपये के निवेश से 2.69 रोजगार सृजित होते हैं। मान लें कि अगर दो लाख करोड़ रुपये का नया निवेश आवास क्षेत्र में होता है, तो लगभग डेढ़ करोड़ नये रोजगार सृजित होंगे। यदि आवास क्षेत्र के अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव को शामिल कर लिया जाये तो आवास क्षेत्र में एक लाख रुपये के निवेश से 4.06 रोजगार पैदा होंगे। आवास निर्माण में निवेश से घरेलू आय में भी 0.41% का इजाफा होता है। आवास निर्माण से लगभग 250 अन्य उद्योग जुड़े रहते हैं, जिनमें सीमेंट, स्टील और बैंकिंग प्रमुख हैं।
क्रेडिट रेटिंग संस्था इंडिया रेटिंग का अनुमान है कि आगामी दो वर्षों में आवास क्षेत्र को मिलने वाला बैंक कर्ज दोगुना हो जायेगा, जो अभी 94,000 करोड़ रुपये है। इंडिया रेटिंग के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘2022 तक हर किसी को मकान’ से देश की अर्थव्यवस्था में 3.5% का विस्तार हो सकता है। आवास निर्माण में निवेश से सरकारी खजाने में भी भारी इजाफा होता है।
केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार मकान की कुल लागत में करों और शुल्कों की हिस्सेदारी तकरीबन 35% है। वित्त वर्ष 2013-14 में आवास क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारों का निवेश 6 अरब डॉलर था, पर इस क्षेत्र में कुल निवेश से सरकारों को 16 अरब डॉलर करों और शुल्कों के रूप में हासिल हुए। दीपक पारेख मानते हैं कि बजट में हुई पहलकदमियों ने अनेक बड़ी बाधाओं को दूर कर दिया है। इन कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था को नये पंख मिल सकते हैं, जिसका सब बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। आवास निर्माण की तेज रफ्तार प्रधानमंत्री मोदी को अनेक तोहमतों से छुटकारा दिला सकती है, इस बात में शक की गुंजाइश नहीं है।
(निवेश मंथन, मई 2017)