सरकार की तरफ से आगे चल कर ऐसे कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं, जो देश के आर्थिक ढाँचे पर बड़ा असर डालेंगे?
2016 में नोटबंदी का फैसला कालेधन को कम करने के लिए किया गया था और इसमें काफी सफलता भी मिली। अब देश में नोटबंदी का असर खत्म हो चुका है और अब देश डिजिटल लेन-देन की तरफ तेजी से आगे बढ़ रहा है। डिजिटल कारोबार बढऩे से टैक्स की उगाही में इजाफा होगा, 2017 में टैक्स चुकाने वालों की संख्या में इजाफा होगा। अब तक कर देनदारी का पालन करने वाला समाज बनाने के बजाय हम इस ओर बढ़ गये थे कि टैक्स को कैसे चुरायें। अब 2017 में एकदम से दिशा पलटी है। कर चुकाने वाला समाज बन रहा है।
नोटबंदी के बाद की स्थिति में कर-संग्रह में कितना इजाफा होने की उम्मीद है? कर चुकाने वालों की संख्या कितनी बढ़ेगी?
लोगों को लग रहा है कि कर चुकाना चाहिए। हमने ऐसी नीतियाँ बनायी हैं, जिनसे कर चुकाने वालों की संख्या बढ़ेगी। कर चुकाने वालों को भी इसका फायदा होगा। जिन लोगों के पास अब तक आधारभूत ढाँचे की सुविधाएँ नहीं पहुँचता था, उन लोगों के पास अब आसानी से पहुँचना शुरू होगा। वित्त विधेयक (फाइनेंस बिल) 31 मार्च तक पारित कराने और 1 अप्रैल से लागू कराने के लिए राष्ट्रपति जी ने भी सरकार की प्रसंशा की। आने वाले समय में 1 जुलाई से जीएसटी लागू होगा, जो आर्थिक सुधारों का सबसे बड़ा प्रकल्प है। मुझे लगता है कि वर्ष 2017 आर्थिक सुधारों के लिए जाना जायेगा।
आप राजस्थान से आते हैं और अभी आपने जीएसटी की बात की। राजस्थान के व्यापारियों ने माँग की है कि जीएसटी में गोदामों के लेन-देन पर 50,000 रुपये की जो सीमा लगायी गयी है उसे बढ़ाया जाये। क्या आप इस सीमा को बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं?
ये सारे मामले जीएसटी परिषद के सामने हैं। व्यापारियों को जहाँ-जहाँ तकलीफ आ रही है, वहाँ-वहाँ जीएसटी परिषद उन परेशानियों को दूर करने का प्रयास कर रही है। जीएसटी नियमों के मुताबिक कम कारोबार वाले ज्यादातर कारोबारियों के टैक्स की देख-रेख का जिम्मा राज्य सरकारों के पास होगा। हमने जो कर श्रेणियाँ निर्धारित की हैं, वे भी मौजूदा परिस्थियों के अनुकूल हैं।
जितना अप्रत्यक्ष कर (इनडायरेक्ट टैक्स) अभी लग रहा है, उसके आसपास ही जीएसटी की श्रेणी होगी। मान लें कि किसी वस्तु या सेवा पर अभी 10% या 11% टैक्स है तो जीएसटी के बाद उस पर 12% कर होगा। जिस पर अभी 7% या 6% कर है, उस पर जीएसटी के बाद 5% हो जायेगा। जिस पर 16% या 17% है, उस पर 18% हो जायेगा। जीएसटी परिषद सभी मौजूदा आशंकाओं का समाधान कर रही है। जो भी वाजिब विषय हैं, उन सभी विषयों को ध्यान में रखते हुए जीएसटी परिषद देशहित में फैसला लेगी।
क्या किसानों को भविष्य में कर के दायरे में लाने पर बात हो रही है?
केंद्रीय वित्त मंत्री ने लोक सभा और राज्य सभा में साफ तौर पर कहा है कि किसानों को कर के दायरे में लाने की कोई योजना नहीं है। किसान अपनी मेहनत या पैसा खर्च करके जो फसल उगाता है, उसे जीएसटी के दायरे में रखा ही नहीं गया है। लेकिन किसान की उगायी हुई फसल को कोई प्रोसेस करता है, तो उस पर जीएसटी लागू होगा। जैसे कि किसान के गेहूँ पर तो टैक्स नहीं है, लेकिन कोई व्यापारी अगर उस गेहूँ से आटा बनाता है और पैक करके बेचता है तो उस पर टैक्स लगेगा। आज जितना टैक्स लग रहा है उस पर, उतना ही लगेगा।
क्या कमोडिटी एक्सचेंजों के करोबार से किसानों का फायदा हो रहा है?
देश के किसान लगातार कमोडिटी एक्सचेंजों पर हो रहे कारोबार की ओर आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन इससे महँगाई नहीं बढ़े। नियामक (रेगुलेटर) यह भी नजर रखेगा कि एक्सचेंजों में अनावश्यक रूप से सट्टा न हो। लेकिन सरकार ऐसी नीतियाँ बना रही है, जिससे किसान कमोडिटी बाजार की ओर आकर्षित हों।
विदेशों से निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार की तरफ से क्या कदम उठाये जा रहे हैं?
सरकार ने एफडीआई को बढ़ाने के लिए नियमों को सरल बनाया है। इसका बोर्ड खत्म किया गया है। जो भी अड़चनें और जटिलताएँ हैं, उनको हम दूर कर रहे हैं। मोदी जी के कालखंड में एफडीआई जितना बढ़ा है, उतना किसी कालखंड में नहीं बढ़ा है।
(निवेश मंथन, मई 2017)