राजेश रपरिया :
बीमा नियामक इरडा ने एजेंटों के कमीशन को पुनर्निधारित करने के लिए बीमादाताओं को अनुमति दे दी है।
अब बीमा दाता कंपनियाँ बीमा प्रीमियम में अधिकतम 5% की घट-बढ़ कर सकती हैं। इरडा थर्ड पार्टी लाएबिलिटी इंश्योरेंस प्रीमियम में बढ़ोतरी की घोषणा पहले ही कर चुकी हैं। आने वाले दिनों में वाहन बीमा के प्रीमियम में और भी बढ़ोतरी हो सकती है। संसद में मोटर व्हीकल (संशोधन) विधेयक पारित होना है। इसके बाद बीमादाताओं की सड़क दुर्घटना में पीडि़त को दी जाने वाली मुआवजा राशि में खासी बढ़ोतरी होनी तय है। अप्रैल 2017 से थर्ड पार्टी बीमा प्रीमियम में 16% से 50% की बढ़ोतरी हो जायेगी।
वैसे इस प्रीमियम की घोषणा इरडा हर साल करती है, लेकिन इस पर इरडा ने प्रीमियम में भारी वृद्धि की है, जो पिछले कई सालों से सर्वाधिक है। कानूनन थर्ड पार्टी देयता का बीमा करना अनिवार्य है। इस बीमा में केवल तीसरे पक्ष यानी पीडि़त को हुए नुकसान की देनदारी शामिल होती है, जैसे चोट, मृत्यु या किसी संपत्ति को नुकसान। इसमें गाड़ी के मालिक और गाड़ी को होने वाला नुकसान शामिल नहीं होता है। इसके लिए अलग से बीमा लेना होता है। इसे ओन डैमेज बीमा बोलते हैं। पर इस बीमा का प्रीमियम इरडा तय नहीं करती। इस बीमा को विनियमित कर दिया गया है। इसलिए विभिन्न बीमा कंपनियों का इस बीमा का प्रीमियम अलग-अलग हो सकता है।
वाहन की इंजन क्षमता के अनुसार थर्ड पार्टी प्रीमियम बढ़ोतरी अलग-अलग है। छोटी कारों यानी एक हजार सीसी से कम क्षमता वाली कारों के प्रीमियम में कोई तब्दीली इरडा ने इस बार नहीं की है। 1000 सीसी या इससे अधिक क्षमता वाली सभी गाडिय़ों का प्रीमियम बढ़ गया है। इनमें मंझोली (1000 सीसी से 1500 सीसी तक), बड़ी गाडिय़ाँ और एसयूवी शामिल हैं। इन गाडिय़ों के प्रीमियम में लगभग 50% की बढ़ोतरी हुई है।
दोपहिया वाहनों में 75 सीसी से कम क्षमता वाले वाहनों को इरडा ने इस साल बख्श दिया है। पर 75 से 150 सीसी वाले दोपहिया वाहनों के प्रीमियम में तकरीबन 16% की बढ़ोतरी हुई है। 150 सीसी से 350 सीसी क्षमता वाले दोपहिया वाहनों पर यह बढ़ोतरी 41% है। 350 सीसी से अधिक क्षमता वाली बाइक के प्रीमियम में लगभग 50% की बढ़ोतरी की गई है। मालवाहक गाडिय़ों के प्रीमियम में 50% तक बढ़ोतरी की गयी है। ट्रैक्टर और ई-रिक्शा भी प्रीमियम बढ़ोतरी से नहीं बच पाए हैं। हाँ, विंटेज कारों में 25% छूट का प्रस्ताव इरडा का है। विंटेज ऐंड क्लासिक कार क्लब ऑफ इंडिया से प्रमाणीकृत होने पर ही कोई कार विंटेज श्रेणी में आती है।
थर्ड पार्टी बीमा राशि की गणना 2011 से 2015-16 के दौरान दुर्घटना संख्या के आधार पर इरडा करती है जो इंश्योरेंस इन्फॉरमेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया मुहैया कराता है। इरडा ने कहा कि कमीशन या मेहनताने में बदलाव किया गया है और साथ ही रिवार्ड का भी प्रावधान किया गया है। नियामक संस्था ने साफ किया है कि प्रीमियम दरों और पॉलिसियों के प्रावधान में कोई हानिकर बदलाव नहीं करने का एक प्रमाण पत्र भी बीमा कंपनियों को देना होगा। बीमा कंपनियाँ निर्दिष्ट दिशा-निर्देशों के तहत ही बदलाव कर सकती हैं।
मोटर व्हीकल (संशोधन) विधेयक मसला अभी संसद में विचाराधीन है। इस विधेयक में प्रस्ताव है जिससे बीमा कंपनियाँ मोटर व्हीकल्स क्लेम्स ट्रिब्यूनल में निर्णित हरजाने को पूरा देने को बाध्य हो जायेंगी। फिलवक्त वाहन का मालिक मौजूदा कानून का लाभ लेते हुए अदालती कार्रवाई से बचने के लिए मृत्यु पर 50,००० रुपये और स्थायी अपंगता पर 25,००० रुपये हरजाना देकर रफा-दफा करने की कोशिश करता है। पर हरजाने की रकम मामूली होने से अधिकांश दुर्घटना मुआवजे के मामले में दावे ट्रिब्यूनल में पहुँच जाते हैं। प्रस्तावित संशोधन अधिनियम का ध्येय है कि दुर्घटना में मुआवजा रकम बढ़ा कर अदालत जाने की प्रवृत्ति को ज्यादा-से-ज्यादा निरुत्साहित किया जाए। अदालती कार्रवाई में पीडि़त वकीलों के चक्कर में लुट जाते हैं और उन्हें मुआवजा भी वक्त पर नहीं मिल पाता है।
सड़क परिवहन मंत्रालय का प्रस्ताव है कि अदालत न जाने की स्थिति में वाहन दुर्घटना में मौत की स्थिति में 10 लाख और गंभीर चोट के लिए 5 लाख रुपये का मुआवजा सुनिश्चित हो। पर वित्त मंत्रालय का सुझाव है कि यह मुआवजा क्रमश: पाँच लाख और 2.5 लाख रुपये होना चाहिए। पर पीडि़त मोटर व्हीकल क्लेम्स ट्रिब्यूनल में जाता है, तो निर्णित हरजाने की रकम बीमादाता कंपनी को पीडि़त को देनी होगी।
सड़क दुर्घटना में बीमा कंपनियों का हरजाने का दायित्व असीमित है। न्यूनतम मजदूरी के अलावा मुआवजे की राशि पीडि़त की स्थिति से निर्देशित होती है, जैसे उसकी आयु, आय, भविष्य में उसकी आय क्षमता आदि। पीडि़त पर आश्रित परिजनों का ख्याल भी मुआवजा राशि के निर्धारण में रहता है। देश में आय और अर्जन क्षमता लगातार बढ़ रही है। इससे बीमा कंपनियों पर मुआवजा अदा करने की मार निरंतर बढ़ रही है।
बीमा के जानकार मानते हैं कि बीमा कंपनियों की प्रीमियम आय और दावे की मुआवजा राशि में अंतर बढ़ रहा है। प्रीमियम दर बढऩे से यद्यपि यह अंतर कम हुआ है, लेकिन अब भी खासा अंतर बना हुआ है। इसमें कोई भी दो मत नहीं है कि पिछले कई सालों से लगातार प्रीमियम बढ़ा है, लेकिन उस अनुपात में नहीं बढ़ा। नतीजा बीमादाता कंपनियों को अब भी नुकसान में रहना पड़ता है। यह हालात तब है, जब 2015-16 में देश में जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के मुताबिक देश में पंजीकृत वाहनों की संख्या 19 करोड़ थी, पर थर्ड पार्टी इंश्योरेंस पॉलिसियों की संख्या 8.26 करोड़ ही थी।
बढ़ती मुश्किलें
नया संवत्सर 2074 वाहन चालकों, वाहन मालिकों और वाहन निर्माता कंपनियों के लिए मुश्किल भरी खबरें ही लेकर आया है। उच्चतम न्यायालय के बीएस-3 वाहनों की 1 अप्रैल 2017 से बिक्री पर प्रतिबंध लगा देने से भारी नुकसान झेलने के लिए वाहन निर्माता कंपनियाँ अभिशप्त हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस निर्णय से इन कंपनियों को कम-से-कम 7-8 हजार करोड़ रुपये का भारी नुकसान होगा। जाहिर है कि घुमा-फिराकर कंपनियाँ इस नुकसान की भरपाई ग्राहकों की जेब काट कर ही करेंगी।
तीन दशक पुराने मोटर व्हीकल ऐक्ट में प्रस्तावित संशोधनों को कैबिनेट की मंजूरी मिल गयी है। इसमें अब शराब पीकर वाहन चलाने पर जुर्माने की राशि को पाँच गुना बढ़ा कर 10 हजार रुपये कर दिया गया है। नशे की हालत में वाहन चालक से सड़क दुर्घटना में किसी अन्य की मौत हो जाती है तो उसे गैर-जमानती अपराध में गिरफ्तार किया जायेगा और जुर्म साबित होने पर उसे 10 साल की कैद हो सकती है। अवयस्क ड्राइविंग को निरुत्साहित करने के लिए पकड़े जाने पर उस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जायेगा। दुर्घटना की स्थिति में उसके अभिभावक को तीन साल कैद हो सकती है और साथ में 25,००० का जुर्माना भी लग सकता है। हेलमेट के बिना दोपहिया वाहन चलाने पर 1000 रुपये के जुर्माने के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गयी है और साथ में तीन महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस भी रद्द कर दिया जायेगा।
ऐसे ही दंड का प्रावधान लाल बत्ती नियमों के उल्लंघन या सीट बेल्ट न लगाने के जुर्म के लिए भी किया गया है। चार साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों के लिए सिर कवच को अनिवार्य बनाया गया है। यह कवच गुणवत्ता के लिहाज से हेलमेट जैसा ही होना चाहिए। ड्राइविंग के समय मोबाइल पर बात करने पर भी जुर्माना पाँच गुना बढ़ा कर ५,००० रुपये कर दिया गया है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2017)