हर निवेशक का उद्देश्य होता है आज बचाये गये पैसों से भविष्य के लिए एक बड़ी संपदा जुटाना, ताकि उम्र के विभिन्न पड़ावों पर आने वाले वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हो।
मगर आम तौर पर निवेशक दो गलतियाँ करते हैं - एक तो युवावस्था में नियमित निवेश की शुरुआत नहीं करना, और दूसरे यह कि शुरुआती दौर में इक्विटी यानी शेयरों में निवेश से परहेज करना। इसके विपरीत, जो लोग युवावस्था में ही नियमित निवेश शुरू करें और शुरुआत में इक्विटी निवेश ही ज्यादा करें, वे लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को कहीं ज्यादा आसानी से पा सकते हैं और तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ी राशि संचित कर सकते हैं।
यह सच है कि इक्विटी को लेकर काफी लोगों के मन में एक स्वाभाविक हिचक होती है, क्योंकि निवेश के लायक शेयरों को चुनने, और उन शेयरों में निवेश के सही समय को पहचानने एक विशेषज्ञता जरूरी है। साथ ही शेयरों में निवेश के बाद उन पर लगातार नजर भी रखनी होती है। यह सब करने के लिए जरूरी कौशल और समय सबके पास नहीं होता। इसीलिए इक्विटी से मिल सकने वाले ऊँचे प्रतिफल का लाभ उठाने के लिए आम निवेशकों को म्यूचुअल फंड का सहारा लेने की सलाह दी जाती है। म्यूचुअल फंड के विशेषज्ञ फंड मैनेजर शेयरों का ऐसा पोर्टफोलिओ बनाने की कोशिश करते हैं, जो गिरते बाजार में बाजार के मुकाबले कम गिरे, और चढ़ते बाजार में बाजार की बढ़त से ज्यादा फायदा दिलाने में सफल रहे।
दरअसल अपने उतार-चढ़ाव के बावजूद इक्विटी ही लंबी अवधि में सबसे अधिक लाभ दे सकने वाली संपदा है। दूसरी ओर जिन संपदाओं में पूँजी और प्रतिफल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, जैसे कि बैंक के मियादी जमा (एफडी), उनमें मिलने वाला प्रतिफल अक्सर महँगाई दर से भी पीछे छूट जाता है, या उसके बिल्कुल आसपास होता है। इसका मतलब यह है कि इनसे मिलने वाला वास्तविक प्रतिफल बहुत कम होता है या महँगाई दर से कम प्रतिफल मिलने की सूरत में वास्तविक रूप से आपकी पूँजी घट ही जाती है। इसलिए अपनी संपदा को पर्याप्त रूप से बढ़ाने और अपने वित्तीय लक्ष्यों तक आसानी से पहुँच पाने के लिए जरूरी होता है कि आपके निवेश पोर्टफोलिओ में इक्विटी की एक अहम हिस्सेदारी हो।
लेकिन यह हिस्सेदारी कितनी हो, यह इस पर निर्भर करता है कि जोखिम उठाने की आपकी क्षमता कितनी है। जोखिम क्षमता का संबंध आपकी आमदनी के स्तर, जिम्मेदारियों और तात्कालिक जरूरतों के साथ-साथ आपकी उम्र से भी होता है। आपकी उम्र जितनी कम होती है, जोखिम उठाने की आपकी क्षमता उतनी ही अधिक होती है। युवावस्था में आपके वित्तीय लक्ष्य दूर होते हैं। इसलिए तब आप शेयर बाजार के किसी उतार-चढ़ाव के दौरान धैर्य के साथ अपना निवेश बनाये रख सकते हैं।
लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, आपकी जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं, वित्तीय लक्ष्य भी पास आने लगते हैं। उस समय आपके लिए वृद्धि की संभावना से ज्यादा जरूरी हो जाता है तब तक संचित की हुई निधि को सुरक्षित रखना। उस समय इक्विटी का निवेश घटा कर बैंक एफडी या डेब्ट फंड आदि में निवेश बढ़ाना बेहतर होता है।
चूँकि उम्र बढऩे के बाद आप अधिक जोखिम ले ही नहीं सकते, इसलिए जरूरी है कि इक्विटी में निवेश की शुरुआत अपनी पहली कमाई के साथ ही या जितनी कम उम्र में संभव हो, उतनी जल्दी कर दें। इससे पहले भी यह चर्चा की जा चुकी है कि जल्दी निवेश शुरू करने से एक तय उम्र के पड़ाव पर आपके पास संचित कोष का आकार ज्यादा बड़ा होगा। यदि आप 50 वर्ष की आयु में बेटे या बेटी की शादी के लिए एक खास राशि जुटाने का लक्ष्य रखते हैं, तो 25 वर्ष की आयु से ही निवेश शुरू कर देने पर कम मासिक निवेश के साथ उस लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है। लेकिन यदि आप अपना निवेश शुरू 30 साल की उम्र से शुरू करें तो आपको कहीं ज्यादा मासिक निवेश करना पड़ेगा। निवेश शुरू करने की उम्र जितनी ज्यादा बढ़ती जायेगी, एक खास राशि जुटाने के लिए जरूरी मासिक निवेश काफी ज्यादा बढ़ता जायेगा और संभवत: कई गुणा बढ़ कर इतना हो जायेगा, जो आपकी वर्तमान आय में संभव ही नहीं हो।
ध्यान रखें कि अंत में संचित कोष कितना बड़ा होगा, यह तीन चीजों से तय होता है। पहली चीज है अवधि। जल्दी निवेश शुरू करने से निवेश के वर्षों की संख्या ज्यादा होगी। दूसरी चीज है निवेश पर प्रतिफल की दर। यह दर अन्य किसी भी संपदा वर्ग के मुकाबले इक्विटी निवेश में ज्यादा होगी। तीसरी चीज है हर महीने किया जाने वाला निवेश। इन तीनों में से कोई भी संख्या घटे तो उतने ही बड़े संचित कोष तक पहुँचने के लिए बाकी दो संख्याओं को बढ़ाना पड़ सकता है। निवेश के वर्ष कम होंगे तो ज्यादा ऊँची दर और ज्यादा मासिक निवेश की जरूरत होगी। ज्यादा ऊँची दर हासिल करने के प्रयास में आपको ज्यादा जोखिम लेना होगा, लेकिन अपने वित्तीय लक्ष्य के करीब रहने पर आप ज्यादा जोखिम ले नहीं सकेंगे। अगर ज्यादा जोखिम लेंगे भी तो यह खतरा रहेगा कि जिस समय पैसे की जरूरत हो, उसी समय आपके निवेश की संचित राशि बाजार के उतार-चढ़ाव से घट जाये।
तो कुल मिला कर सूत्र यह है कि निवेश की शुरुआत जल्दी करें और शुरुआती वर्षों में अपने निवेश में इक्विटी की हिस्सेदारी अधिक-से-अधिक रखें।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2017)