माननीय प्रधान न्यायाधीश श्री खेहर जी, आपके नाम यह खुला पत्र लिख रहा हूँ।
सर्वोच्च न्यायालय ने आम नागरिकों को न्याय देने के लिए बहुत-से दरवाजे खोले हैं, जो पहले बंद थे। फिर भी, समय और साधनों के अभाव में हर व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह एक याचिका के माध्यम से आप तक पहुँचे। इसलिए उम्मीद कर रहा हूँ कि यह खुला पत्र किसी-न-किसी तरह आप तक पहुँच जायेगा और आप इसका संज्ञान लेंगे।
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि आपने उन लोगों के लिए एक श्रेणी क्यों नहीं बनायी, जो चलन से बाहर हो चुके नोटों को 30 दिसंबर 2016 से पहले जमा नहीं करवा पाये। न्यायालय ने सरकार को 11 अप्रैल तक हलफनामा दाखिल करके बताने को कहा है कि उसने मुश्किल में फँसे लोगों के लिए खिड़की क्यों नहीं बनायी और क्यों यह मौका सिर्फ प्रवासी भारतीयों या उन्हीं नागरिकों को दिया गया, जो विदेश यात्रा पर थे।
माननीय न्यायमूर्ति जे. एस. खेहर जी, विनम्रता से कहना चाहूँगा कि न्यायालय का प्रश्न गलत या अधूरा है। स्वयं आपके संज्ञान में है कि प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर 2016 को देश को संबोधित करते हुए भरोसा दिलाया था कि अमान्य हो चुके नोटों को लोग आरबीआई की शाखाओं में 31 मार्च 2017 तक जमा कराया जा सकता है। यही आश्वासन विमुद्रीकरण की औपचारिक घोषणा के लिए आरबीआई की ओर से जारी प्रथम अधिसूचना में भी दिया था।
30 दिसंबर 2016 तक बैंकों में नोट बदलने की समय-सीमा खत्म होने तक सरकार या आरबीआई ने कहीं भी किसी भी रूप में यह संकेत नहीं दिया था कि 31 मार्च 2017 तक आरबीआई शाखाओं में नोट बदलने की सुविधा का जो आश्वासन दिया गया था, वह सुविधा केवल प्रवासी भारतीयों या विदेश यात्रा पर गये भारतीयों के लिए सीमित रहने वाली है। ऐसे में जिस व्यक्ति ने भी यह सोचा हो कि (चाहे किसी भी कारण से) कि वह बैंक में जाने के बदले 31 मार्च से पहले आरबीआई में अपने नोट बदलवायेगा, उसके पास ऐसा सोचने के लिए एक वाजिब कारण था, स्वयं प्रधानमंत्री और आरबीआई की ओर से किया गया एक वादा था।
इस वादे पर भरोसा करके जिन लोगों ने 30 दिसंबर 2016 से पहले किसी बैंक में जा कर अपने नोट नहीं बदले, उनके भरोसे को केंद्र सरकार के विमुद्रीकरण अध्यादेश में तोड़ा गया है।
प्रधानमंत्री के 8 नवंबर के संबोधन या आरबीआई की अधिसूचना में आरबीआई शाखा में 31 मार्च तक नोट बदलने की सुविधा के साथ कोई शर्त नहीं जोड़ी गयी थी। 30 दिसंबर को बैंकों में नोट बदलने का विकल्प समाप्त होने के बाद ऐसी शर्त जोड़ दिया जाना बिल्कुल गलत है और इसने काफी संख्या में ऐसे लोगों को विकल्पहीन छोड़ दिया है, जिन्होंने प्रधानमंत्री और आरबीआई के वादे पर भरोसा करके 31 मार्च 2017 तक नोट बदलने का विकल्प चुना हो। यह कुछ ऐसा ही मामला है कि कोई सरकारी टेंडर भरने की तारीख 31 मार्च 2017 तक घोषित करने के बाद अचानक 30 दिसंबर 2016 को ही कह दिया गया हो कि टेंडर भरने की तारीख खत्म हो गयी, अब किसी का टेंडर स्वीकार नहीं होगा। माननीय न्यायमूर्ति खेहर जी, आपको स्मरण होगा कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ऐसा ही किया गया था और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे गैर-कानूनी बताया था।
सरकार का यह निर्णय कुछ ऐसा ही है मानो फुटबॉल के खेल में एक टीम ने जब गोल दाग दिया हो, उसके बाद कहा जाये कि गोल पोस्ट वहाँ था ही नहीं, गोल पोस्ट कहीं और माना जायेगा। या फिर, किसी परीक्षा में छात्र के परचा लिख लेने के बाद, परीक्षा खत्म होने के बाद कहा जाये कि प्रश्न पत्र तो कोई दूसरा था, आपने सारे गलत सवालों के जवाब लिख दिये।
इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध है कि वह सरकार को ऐसे सभी लोगों के लिए एक विशेष खिड़की खोलने का निर्देश दे, जो किसी भी कारण से 30 दिसंबर 2016 तक बैंकों में 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट जमा नहीं करा सके। आखिर सरकार को अब क्या हिचक है, क्योंकि 8 नवंबर 2016 तक 500 और 1000 रुपये के जितने भी नोट प्रचलित थे, उनमें से लगभग सारे नोट तो आरबीआई के पास आ ही चुके हैं। अब अगर कोई व्यक्ति इन पुराने नोटों में बड़ी रकम जमा कराने आये तो सरकार उससे स्रोत की पूछताछ कर सकती है। लेकिन ऐसे तमाम लोग होंगे, जिन्हें 30 दिसंबर के बाद भी घर की सफाई में, या कहीं किसी किताब में दबे 10-20 पुराने नोट मिल गये होंगे। किसी गृहिणी को चावल के डिब्बे में रखे नोट भी मिले होंगे, जिन्हें वह रख कर भूल गयी होगी। कोई बुजुर्ग अपने बेटे-बेटी के यहाँ महीनों रहने के बाद अपने स्थायी निवास वापस लौटा होगा तो उसे संदूक में कुछ नोट मिल गये होंगे।
कारण तो कुछ भी हो सकता है पुराने नोट अब भी पड़े होने का। मगर सबसे पहली बात यही है कि 31 मार्च 2017 तक की समय-सीमा जब बतायी गयी थी, तब उसके लिए कोई शर्त नहीं थी, कोई कारण बताने की जरूरत नहीं थी। प्रधानमंत्री और आरबीआई का एक बहुत स्पष्ट वादा था। उस वादे को नहीं निभाना भविष्य में सरकार की संप्रभु गारंटी पर ही सवालिया निशान खड़े कर देगा। अगर इस वादे को नहीं निभाया गया, तो क्या गारंटी कि भविष्य में सरकार अपनी ओर से जारी बॉन्डों का भुगतान करेगी? कल को एक अध्यादेश ला कर वह कह दे कि ये सारे बॉन्ड अमान्य घोषित किये जाते हैं! इसलिए न्यायमूर्ति खेहर जी, सरकार को आप याद दिलायें कि वह अपने वादे से यूँ नहीं मुकर सकती है। बात छोटे या बड़े वादे की नहीं है। सरकार का कोई भी वादा अटल होना चाहिए। सरकारी वादा टूटने की वजह से किसी नागरिक का एक रुपया भी बर्बाद नहीं होना चाहिए।
और, न्यायालय का निर्णय आने से पहले क्यों न खुद केंद्र सरकार अपनी गलती सुधार ले? प्रधानमंत्री जी, नोटबंदी के पहले दिन से मैंने लगातार इस निर्णय का समर्थन किया। इस समर्थन को लेकर विरोधी लोगों ने मुझे क्या कुछ नहीं कहा। दलगत झुकाव का आरोप तो बहुत छोटा है, किसी ने बिका हुआ कह दिया तो किसी ने पत्रकार मानने से ही मना कर दिया! लेकिन खुद आपके वादे को तोडऩे वाला यह सरकारी निर्णय गलत है। सरकार इसे प्रतिष्ठा का विषय न बनाये और गलती को सुधार ले। न्यायालय ने सरकार से जो प्रश्न पूछे हैं, वे आपको इस गलती को सुधार लेने का सम्मानजनक अवसर दे रहे हैं। इस अवसर का उपयोग कीजिए।
अगर आप जनता के पास बच गये कुछ छिट-पुट पुराने नोट बदलने की सुविधा नहीं देना चाहते, तो कृपया एक पहेली का उत्तर दे दें। जिन लोगों के पास 10-20-50 पुराने नोट बच गये हों, वे इनका क्या करें? आपकी सरकार ने 10 से ज्यादा ऐसे पुराने नोटों को रखना कानूनी अपराध बना दिया है, इसलिए रख नहीं सकते। इन नोटों को बैंक या आरबीआई को भी नहीं दे सकते। इन नोटों को जलाना, फाडऩा या किसी भी तरीके से नष्ट करना अपराध होता है। रख नहीं सकते, दे नहीं सकते, नष्ट नहीं कर सकते। तो प्रधानमंत्री जी, आप ही बताइये कि लोग इनका क्या करें?
(निवेश मंथन, अप्रैल 2017)