फरवरी की मौद्रिक नीति समीक्षा में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नीतिगत दरों को लेकर अपने रवैये में बदलाव किया है।
इसने नरम (एकमोडेटिव) के बदले उदासीन (न्यूट्रल) रुख अपनाने की बात कही है। तो क्या वाकई यह मान लेना चाहिए कि अब ब्याज दरों का चक्र पलट रहा है, या कम-से-कम अब ब्याज दरों में कटौती की ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए?
आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल ने हाल में 22 फरवरी को संवाददाताओं से बातचीत में भी यह संकेत दिया कि मौद्रिक नीति का रुख नरम से उदासीन बनाने से यह लचीलापन हासिल होगा कि नीतिगत दरों को किसी भी दिशा में ले जाया जा सके। यानी संकेत साफ है कि आने वाले समय में दरें बढ़ायी भी जा सकती हैं।
हाल में आरबीआई के नजरिये में हुए बदलाव के बारे में ऊर्जित पटेल ने एक साक्षात्कार में कहा है कि इस नये नजरिये के मुताबिक एमपीसी आगे दरों को स्थिर भी रख सकती है, बढ़ा भी सकती है और घटा भी सकती है। मगर साथ में जिन खास पहलुओं का पटेल ने जिक्र किया है, उनसे साफ है कि आरबीआई इस समय महँगाई दर को लेकर पहले से कुछ ज्यादा चिंतित है और दरें घटाने-बढ़ाने के लिए महँगाई दर पर ही उसकी सबसे ज्यादा नजर रहने वाली है।
आरबीआई की नजर इस बात पर है कि कमोडिटी के अंतरराष्ट्रीय भाव बढ़ रहे हैं। धातुओं के भाव बढ़े हैं, कच्चा तेल भी कुछ समय से 50-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच में चल रहा है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य कीमतें भी चढ़ी हैं। इस परिदृश्य में आरबीआई यह मान कर चल रहा है कि साल 20171-8 की पहली छमाही में महँगाई दर भले ही 4-4.5% के दायरे में रहे, पर उसके बाद यह बढ़ कर 4.5-5% की ओर चली जायेगी। मगर आरबीआई का लक्ष्य इसे 4% के आसपास रोक कर रखना है।
आईसीआईसीआई डायरेक्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार आरबीआई के "नजरिये में यह बदलाव बाजार को चौंकाने वाला रहा, खास कर विमुद्रीकरण के बाद कमजोर विकास दर के अनुमानों के मद्देनजर। एमपीसी का यह मानना है कि महँगाई दर (ईंधन और खाद्य छोड़ कर) के टिके रहने से मुख्य महँगाई दर अपना एक आधार बना सकती है, जिसके नीचे यह न जाये और इस बात का आगे और असर कीमतों पर दिखे। इसके चलते छोटी अवधि में जी-सेक यील्ड को लेकर एक सावधान नजरिया बनता है।" संभवत: यही कारण है कि पिछले लगभग एक साल से जी-सेक (सरकारी प्रतिभूतियों) के यील्ड में गिरावट का जो रुझान बना हुआ था, वह फरवरी की मौद्रिक नीते के बाद से एकदम पलटा है और यील्ड में उछाल देखने को मिली है।
हालाँकि आईसीआईसीआई डायरेक्ट का मानना है कि मध्यम अवधि में खुदरा महँगाई दर (सीपीआई) को 4% पर रखने का लक्ष्य पाना मुश्किल लगता है, क्योंकि अगले वित्त वर्ष (2017-18) के अंत तक खुदरा महँगाई दर 4.5% के आसपास रहने का अनुमान है। इसके चलते आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने जी-सेक यील्ड पर सावधान नजरिया रखने की बात कही है। पर इसका यह भी कहना है कि मौजूदा स्तरों से कोई बहुत बड़ी चाल नहीं आयेगी। इसका मानना है कि 10 साल के जी-सेक यील्ड का दायरा 6.5-7.0% के दायरे में बना रहेगा।
महँगाई दर पर मुख्य ध्यान होने का दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि विकास दर को लेकर आरबीआई काफी हद तक आश्वस्त है। आरबीआई की नजर इस बात पर है कि बीते पाँच महीनों से निर्यात सकारात्मक चल रहा है। निजी निवेश की माँग में भी उसे सुधार की उम्मीद है। पर यह याद रखना चाहिए कि निजी निवेश की माँग में सुधार पिछले कई वर्षों से एक छलावा ही साबित हुई है। वहीं औद्योगिक उत्पादन के आँकड़े अब तक कमजोर ही रहे हैं। इसलिए यह सवाल बना रहेगा कि आरबीआई के लिए विकास दर को लेकर ज्यादा आश्वस्त हो जाने और केवल महँगाई दर नीचे रखने पर सारा ध्यान लगा देने की रणनीति कितनी सही होगी?
(निवेश मंथन, मार्च 2017)