धनंजय सिन्हा, रिसर्च प्रमुख (संस्थागत) , एमके ग्लोबल :
जीडीपी के चौंकाने वाले आँकड़े आने के दो-तीन कारण हैं। एक तो उन्होंने डीबेस किया है, यानी पिछले साल का आँकड़ा उन्होंने घटाया है, जिससे इस बार की दर में अंतर आ जाता है।
जो पुराना आँकड़ा था, उसके आधार पर देखेंगे तो साफ तौर पर धीमापन आया है। साथ ही, अगर आप ठीक पिछली तिमाही (2016-17 की दूसरी तिमाही) से तुलना करें, तो वृद्धि दर करीब 2.3% आती है।
पिछले सात-आठ वर्षों में अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में त्योहारों की वजह से औसतन 5-6% तिमाही-दर-तिमाही बढ़त होती है। इस बार औसत की तुलना में आधी वृद्धि हुई है, जबकि इस बार त्योहारी मौसम अच्छा था, जिसमें अर्थव्यवस्था की चाल अच्छी बनी हुई थी और मॉनसून भी बेहतर था। ऐसे में तो 6% से ज्यादा ही वृद्धि होनी चाहिए थी। उसकी तुलना में केवल 2.3% वृद्धि होना एक बड़ी गिरावट है। यह गिरावट मोटे तौर पर 1.25 लाख करोड़ रुपये की है।
कुछ-कुछ क्षेत्रों में नोटबंदी का असर दिखता भी है। बैंक ऋणों की वृद्धि 61 वर्षों के निचले स्तर पर आ गयी है। निर्माण (कंस्ट्रक्शन) पर असर हुआ है। इसलिए जीडीपी के जो आँकड़े आये हैं, वे नोटबंदी के असर को कम करके बता रहे हैं। जब जीडीपी में 7% और जीवीए में 6.7% बढ़त हुई हो, वैसे समय में ऋण वृद्धि दर इतने निचले स्तर पर नहीं हो सकती है।
उन्होंने 6.7% जीवीए वृद्धि दर्शायी है, जो पहले की तुलना में केवल 0.30% कम है। इतनी कमी तो सामान्य उतार-चढ़ाव में भी आ जाती है। इसलिए हमें लगता है कि नोटबंदी का असर इन आँकड़ों में झलका ही नहीं है। मैं यह तो नहीं कह रहा कि आँकड़ों को जान-बूझ कर सँवारा गया है। मैं केवल इतना कह रहा हूँ कि ये आँकड़े नोटबंदी के असर को पर्याप्त रूप से दिखा नहीं रहे हैं, जितना असल में हुआ होगा।
दूसरे, सामान्य रूप से ही जीडीपी की संख्या मुझे विश्वसनीय नहीं लगती है। जीडीपी में 7% या इसके आसपास की वृद्धि दर बिना निवेश के नहीं आती है। लेकिन आप देखें कि पिछले छह-सात सालों से निजी निवेश नहीं हो रहा है और पिछले तीन सालों में इसमें गिरावट ही आयी है। एनपीए बहुत बढ़े हुए हैं।
पहले जब 2004, 2005 के आसपास जीडीपी वृद्धि तेज हो रही थी तो निवेश में भी तेजी आयी थी। आज के जो आँकड़े हैं, वे किसी भी उद्योग के मुख्य संकेतकों से मेल नहीं खाते। चाहे आप निवेश देखें, सीमेंट और इस्पात वगैरह के उत्पादन देखें, ऋण वृद्धि देखें, औद्योगिक उत्पादन के आँकड़े लें, तो उनका मेल नहीं बैठ रहा है। इसलिए 5-6 साल पहले 7% वृद्धि का जो मतलब होता था, उसके मुकाबले आज इसके अंतर्निहित पहलुओं में बहुत अंतर है।
दरअसल पहले की 5% विकास दर आज के 7% विकास दर के बराबर है और पहले की 7% विकास दर आज के 9-10% विकास दर के बराबर होगी। सीएसओ ने जीडीपी आकलन की पद्धति में जो बदलाव किया है, उसके चलते ऐसा हो रहा है। सीएसओ ने इस बदलाव को उचित ठहराया है। हो सकता है कि सिद्धांत रूप में वह बदलाव सही हो, लेकिन वह अकादमिक बात है। व्यावहारिक रूप में इसका मेल नहीं बैठ रहा है।
(निवेश मंथन, मार्च 2017)