राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने से पहले एक कारेाबारी संगठन के समारोह में नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार के कर प्रशासन के रवैये को आतंकवादी घोषित कर कारोबारी समुदाय का दिल जीत लिया था।
यह टिप्पणी उन्होंने वोडाफोन विवाद में यूपीए सरकार के भूतलक्षी (रेट्रोस्पेक्टिव) कर कानूनों पर की थी। अगस्त 2014 में एक अन्य बड़े कारोबारी संगठन के समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आम आदमी पुलिस से ज्यादा आय कर अधिकारियों से भयभीत रहता है। उन्होंने इस दहशतगर्दी को समाप्त करने के लिए प्रशासन और कानूनों में सुधारों की पुरजोर वकालत भी की।
2014 में बजट पेश करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वादा किया था कि उनकी सरकार पूर्व प्रभाव से कर कानूनों में ऐसे बदलाव नहीं लायेगी, जिससे नयी देनदारी पैदा हो। इन बातों से कारोबारी जगत ने काफी राहत महसूस की थी। पर मोदी और उनकी सरकार के अन्य बड़े वादों की तरह कर कानूनों में बदलाव के वायदे भी महज जुमले साबित हुए हैं। वर्ष 2017-18 के बजट में भारतीय आय कर कानून में १ अप्रैल से ऐसे बदलाव लागू हो जायेंगे, जिनसे करदाताओं को, या कम-से-कम व्यापारी जगत को आय कर महकमा जल्लाद नजर आयेगा। इन बदलावों के बाद से तलाशी, छापे और जब्ती के लिए आय कर अधिकारियों की सत्ता निरंकुश हो जायेगी। आय कर निर्धारिती न उनसे कारण पूछ पायेगा, न ही उनकी कार्रवाई को किसी न्याय प्राधिकरण में चुनौती दे पायेगा।
ऐसा लगता है कि नोटबंदी के फैसले के बाद मोदी सरकार बौखलाहट में है, जो नाना प्रकार से प्रकट हो रही है। अरुण जेटली को यह घोषित करने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ कि भारत टैक्स का गैर अनुपालक देश है। सरल शब्दों में इसका आशय यह है कि भारत कर चोरों का देश है। वित्त मंत्री जेटली का तर्क है कि 125 करोड़ आबादी के देश में महज 3.7 करोड़ लोग ही आय कर विवरण दाखिल करते हैं। पाँच लाख रुपये या इससे अधिक आय दिखाने वालों की संख्या 78 लाख है, जिनमें से 58 लाख लोग वेतनभोगी हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी करदाताओं की संख्या को लेकर सवाल उठा चुके हैं। आय कर अधिनियम में यह ताजा बदलाव इस आक्रांत मानसिकता की स्वाभाविक उपज है।
मोदी सरकार ने भारतीय आय कर अधिनियम 1961 की धारा 132 की उपधारा (1) और (1ए) में बदलाव किये हैं। ये बदलाव 55 वर्ष पूर्व यानी 1 अप्रैल 1962 से प्रभावी माने जायेंगे। अब कर अधिकारियों को किसी अधिकारी या अपीलैट ट्रिब्यूनल या और किसी को तलाशी या गलती के आधार बताने की जरूरत नहीं रह गयी है। अनेक मुकदमों में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय यह निर्णय सुना चुके हैं कि तलाशी या जब्ती की कार्रवाई महज संदेह पर आश्रित नहीं होनी चाहिए, बल्कि कर अधिकारी के पास उपलब्ध जानकरी विश्वसनीय सूचनाओं पर आधारित होनी चाहिए। सूचना से अभिप्राय है कि वह अफवाह, गप या मन के आभास से ज्यादा ऐसे तत्वों पर आधारित होनी चाहिए, जिन्हें सूचना माना जा सके। माननीय न्यायाधीशों ने इन मुकदमों में यह भी कहा है कि यद्यपि इस धारा के आलोक में न्यायालय की दखल सीमित है। न्यायालय अपनी सीमा में रहते हुए यह जाँच सकता है कि धारा 132 के तहत कार्रवाई स्वेच्छाकारी या बदनीयती से तो नहीं की गयी है। पर नये बदलावों से कर अधिकारी महज अफवाह, चर्चा या अपुष्ट संदेह पर कर निर्धारिती के यहाँ तलाशी-जब्ती के छापे मार सकते हैं और उन्हें यह बताने की दरकार नहीं है कि किस बिना पर उन्होंने कार्रवाई की है।
आय कर अधिनियम की धारा 132 की उपधारा 9 में दो नयी उपधाराएँ जोड़ी गयी हैं। इन से आय कर अधिकारी राजस्व हित में किसी भी संपदा को कुर्क कर सकते हैं। इनमें विक्रय माल (स्टॉक इन ट्रेड) भी शामिल है। इससे पहले टैक्स अधिकारी बही खातों, अन्य दस्तावेजों, धन, सोना जवाहरात, आभूषण आदि कुर्क कर सकते थे, लेकिन जो सोना-चाँदी, आभूषण और अन्य कीमती सामान विक्रय माल में आते थे, उन्हें कर अधिकारी कुर्क नहीं कर सकते थे, बल्कि उनकी फेहरिस्त बना कर जमा की जाती थी। पर नये प्रावधानों के अनुसार अब कर अधिकारी किसी अधिकृत अधिकारी या निदेशक की अनुमति से विक्रय माल को छह महीने के लिए कुर्क कर सकते हैं। अनेक कर विशेषज्ञों का कहना है कि विक्रय माल की कुर्की से कई कारोबारी अपने व्यवसाय पर ताले डालने को मजबूर हो सकते हैं। अजीब संयोग है कि स्वयं नरेंद्र मोदी ने देश में संभवत: पहली बार कर आतंकवाद जैसे शब्द का इस्तेमाल किया था, पर उनके ही राज में इसे बढ़ावा मिल रहा है। सब जानते हैं कि कर आतंकवाद कर कानूनों-नीतियों से ज्यादा उनके क्रियान्वयन में झलकता है। मनमानी कार्रवाइयों से ही कर आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। विडंबना यह है कि सब कुछ सार्वजनिक हित के नाम पर होता है।
(निवेश मंथन, मार्च 2017)