2017 की दूसरी तिमाही से बढ़ेगी बिक्री
अनुज पुरी, चेयरमैन और कंट्री हेड, जेएलएल इंडिया
वर्ष 2016 रियल एस्टेट उद्योग के लिए, खास कर नीति के मोर्चे पर, दशकों का सबसे बड़ा बदलाव लाया। जीएसटी और रियल एस्टेट रेगुलेशन ऐक्ट (रेरा) जैसी बड़ी नीतियों की अड़चनें खत्म हुईं और वे क्रियान्वयन के मार्ग पर अग्रसर हैं। नोटबंदी ने खलबली मचा दी, पर बेनामी लेन-देन अधिनियम के साथ इसने रियल एस्टेट क्षेत्र में अधिकाधिक पारदर्शिता लाने का वादा किया।
पूर्ववर्ती वर्षों के मुकाबले अब सस्ते आवासों पर खास ध्यान दिया जायेगा और रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (रीट) के जरिये आगामी वर्ष में छोटे निवेशकों के लिए रियल एस्टेट बाजार को खोलने का वादा है। उच्च पारदर्शिता के कारण देश के रियल एस्टेट बाजार निश्चित रूप से मँझोली से दीर्घ अवधि में वृद्धि के लिए तैयार है।
आवासीय रियल एस्टेट
वर्ष 2016 में पूरे भारत में यह प्रवृत्ति देखी गयी कि पहली तिमाही से तीसरी तिमाही तक हर तिमाही में पेश होने वाली नयी परियोजनाओं के मुकाबले आवास बिकने की संख्या ज्यादा रही। नयी पेशकश की सुस्त संख्या ने इन्वेंटरी का अंबार घटाने में मदद की। हालाँकि विमुद्रीकरण के चलते चौथी तिमाही के आँकड़े पहली तीन तिमाहियों से बिल्कुल अलग होंगे।
चूँकि पुराने करेंसी नोट अब वैध नहीं रहे, इसलिए नकद में लेन-देन करने के लिए अघोषित आय का उपयोग करने वाले आवास खरीदार/निवेशक मुश्किल दौर का सामना कर रहे हैं। नकद स्वीकार करने वाले डेवलपर चेक/बैंक हस्तांतरण के जरिये सभी भुगतान स्वीकार करने वाले डेवलपरों के मुकाबले ज्यादा संकट का सामना कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वर्ष 2008 के ऐतिहासिक वर्ष से आगे बढ़ते हुए वर्ष 2016 पेश (लॉन्च) हुए आवास बनाम बिके आवास के मामले में एक नया कीर्तिमान कायम करता है।
सभी शहरों, खास कर हैदराबाद, पुणे और बेंगलुरु में कीमतों (सीवी) में वर्ष 2016 में अच्छी वृद्धि देखी गयी। यह प्रवृत्ति 2017 में जारी रहने की उम्मीद है, क्योंकि आवासीय बाजार परिपक्व हो गया है और पहले के मुकाबले अब अंतिम उपभोक्ता की माँग पर ज्यादा चल रहा है। बिक्री की गति पूरे वर्ष भर स्थिर बनी रही। विमुद्रीकरण के कारण कई खरीदारों ने आवास मूल्य में कुछ कमी आने की उम्मीद में खरीदारी के निर्णयों को रोक रखा है। लेकिन विमुद्रीकरण का गुबार थमने के बाद 2017 की दूसरी तिमाही से बिक्री बढऩे की संभावना है।
हालाँकि इन्वेंटरी का अंबार घटा है, फिर भी अनबिकी इकाइयों की मात्रा के रूप में तीन सबसे बड़े बाजारों में एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु शामिल हैं। मात्रा के आधार पर एनसीआर में 37% इन्वेंटरी है, जो पूरे भारत की अनबिकी (निर्माणाधीन समेत) आवासीय इन्वेंटरी के एक तिहाई से ज्यादा है।
तीन महानगरों में कुल अनबिकी इन्वेंटरी में से 5% से भी कम इकाइयाँ कब्जा दिये जाने की स्थिति में हैं। मोटे तौर पर अंतिम उपभोक्ता संचालित बाजार बेंगलुरु में वर्ष 2010 तक पेश परियोजनाओं में सबसे कम अनबिकी इन्वेंटरी है। यहाँ निर्माण पूरा होने तक लगभग सभी इकाइयाँ बिक गयी हैं।
मुंबई में प्रतिशत ज्यादा है, लेकिन यदि हम बड़ी परियोजनाओं के पूरा होने में लगने वाले लंबे समय को नजरअंदाज कर दें तो यहाँ अनबिकी इन्वेंटरी 5% से कम होगी। कई बड़ी परियोजनाएँ, हाई-राइज, झुग्गी पुनर्वास और अन्य पुनर्विकास परियोजनाएँ हैं जो पूरा होने में लंबा समय लेती हैं और शहर में कुल परियोजना समय-सीमा को बढ़ा देती हैं। वहीं दिल्ली-एनसीआर अत्यधिक आपूर्ति और विलंब तथा रुकी हुई परियोजनाओं के भंडार तले दबा है।
वाणिज्यिक रियल एस्टेट
माँग के मोर्चे पर देखें तो विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स एवं एफएमसीजी जैसे क्षेत्रों की कार्यालय स्थल जरूरतों ने 2016 में सकारात्मक संकेत दिये हैं और हमें 2017 में भी इसके जारी रहने की उम्मीद है। साथ ही ईकॉमर्स/स्टार्टअप और सलाहकार फर्मों की कार्यालय स्थल जरूरतें बढ़ी हैं, क्योंकि आगामी वर्षों में अपनी व्यवसाय वृद्धि को संयोजित करने के लिए इन क्षेत्रों में भर्तियाँ जारी रहने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं पर बढ़ी लागत और अनुपालन का दबाव है और इससे इनके द्वारा भारत से और अधिक लोगों को आउटसोर्स किये जाने की उम्मीद है। इसमें डॉलर और यूरो के मुकाबले रुपये के अवमूल्यन की प्रमुख भूमिका रहने की संभावना है।
साल 2016 की चौथी तिमाही के अंतिम आँकड़े आ जाने के बाद 2016 में अच्छी खपत और पूर्व-वायदों के परिप्रेक्ष्य में वाणिज्यिक रियल एस्टेट के लिए कुल माँग 3.42 करोड़ वर्ग फुट रहने की उम्मीद है। इसमें से पूरे भारत में 2016 की तीसरी तिमाही तक कुल खपत 2.64 करोड़ वर्ग फुट की रही। यद्यपि कई कब्जेदारों के लिए सही जगह पर सही स्थान की उपलब्धता चुनौती बनी हुई है। साल 2017 में 3.8-4.0 करोड़ वर्ग फुट नये स्थल पेश किये जायेंगे। बुनियादी ढाँचे में ज्यादा निवेश के चलते 2017 में कार्यालय माँग में पुणे, हैदराबाद जैसे दूसरी श्रेणी के शहरों और चेन्नई के अग्रणी रहने की उम्मीद है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)