बाजार के तौरतरीकों से अनजान जो लोग निवेश की शुरुआत कर रहे हों, उन्हें म्यूचुअल फंड में निवेश की सलाह दी जाती है।
दरअसल विविधीकरण, लचीलापन और पेशेवरों द्वारा कोष का प्रबंधन इन फंडों का सबसे बड़ा आकर्षण है। फंड किसी कंपनी की प्रबंधन क्षमताओं, बही-खातों और क्रेडिट प्रोफाइल से लेकर उसके भविष्य की संभावनाओं का आम निवेशकों की तुलना में बेहतर आकलन करते हैं। ऐसे में इन फंडों में किये गये निवेश से निवेशक बेवजह के गुणा-भाग से बच जाते हैं। उनका निवेश सुरक्षित रहने के साथ ही तय की गयी अवधि में अपेक्षाकृत बेहतर प्रतिफल भी दे जाता है और कर बचत भी करा देता है।
कैसे करें चयन
बिना किसी सलाह के फंड का चयन करने में अमूमन उसकी रेटिंग पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है। ऐसे में अक्सर पाँच सितारा रेटिंग वाले फंडों पर ही मुहर लग जाती है। मगर ऐसा करना हमेशा समझदारी भरा नहीं होता है। लिहाजा, निवेश करने से पहले अपनी जरूरत का ख्याल रखना सबसे बेहतर होता है। ऊँची रेटिंग वाले फंडों का कोष मुख्य रूप से इक्विटी में लगा होता है और अगर बाजार में अस्थिरता का दौर जारी हो तो निवेश पर उल्टे लेने-के-देने पड़ जाते हैं। वर्ष 2007-08 में चरम से उतरे बाजार में ऐसे तमाम फंडों की हालत बुरी तरह खराब हुई थी। निवेशकों को नुकसान से बचाने के लिए वैसे तो बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने निर्देश दिया है कि निवेशकों को जोखिम आकलन करने के बाद ही निवेश करना चाहिए। मगर इसका इसका अक्षरश: पालन नहीं होता है।
अलग-अलग पैमाने
निवेश करने से पहले तमाम पहलुओं पर गौर करना जरूरी है। मसलन निवेशक की उम्र, निवेश का मकसद, निवेश की अवधि, मौजूदा निवेश, आमदनी और देनदारियाँ और उसकी जोखिम लेने की क्षमता जैसे पैमानों पर गौर करने के बाद ही कदम बढ़ाना चाहिए। इनके हिसाब से ही आदर्श पोर्टफोलियो तैयार होता है। नये निवेशकों को यही सलाह दी जाती है।
अगर वे दीर्घावधिक लाभ चाहते हैं तो उन्हें अपना कुछ कोष इक्विटी म्यूचुअल फंडों में लगाना चाहिए। अगर सोने जैसी मूल्यवान धातु में पहले से कोई निवेश नहीं किया है तो कोष का 10% से 15% तक हिस्सा उनसे जुड़े एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) में भी लगाया जा सकता है।
निवेश का मकसद भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। मसलन अगर बच्चे की शिक्षा या बेटी की शादी जैसे किसी लक्ष्य के लिए निवेश करना है तो ज्यादा राशि इक्विटी फंड में लगाने की सलाह दी जायेगी, क्योंकि इस बीच अगर बाजार में अस्थिरता भी आती है तो उसके समायोजन के लिए समय भी मिल जायेगा। लेकिन अगर दो-तीन साल की तात्कालिक जरूरत के लिए निवेश कर रहे हैं तो इक्विटी फंड निराश भी कर सकते हैं। निवेश करने से पहले समय अवधि तय करना भी बेहद अहम माना जाता है। निवेश करने से पहले इन बातों के अलावा फंड मैनेजर के पुराने रिकॉर्ड, बाजार के विभिन्न चक्रों के दौरान कोष का प्रदर्शन, फंड के व्यय अनुपात जैसे पहलुओं पर भी गौर करना चाहिए।
विकल्पों की भरमार
शुरुआत करने के लिए संतुलित (बैलेंस्ड) फंडों को उपयुक्त माना जाता है। असल में इक्विटी और डेब्ट के रूप में इनका संतुलन इन्हें हाइब्रिड फंड बनाता है, जिसमें प्रतिफल के साथ जोखिम सुरक्षा का उचित संतुलन होता है। इक्विटी आधारित बैलेंस फंडों का अक्सर 65% से अधिक कोष इक्विटी में निवेश होता है।
इसमें डेब्ट का संयोजन पहली बार निवेश करने वालों को बाजार के झंझावातों से महफूज रखने में मददगार होता है। दीर्घावधि में ये फंड कर बचत का विकल्प भी देते हैं, लेकिन लघु अवधि में आपको 15% तक का कर अदा करना पड़ सकता है। इनमें लाभांश भी पूरी तरह कर मुक्त होता है।
वहीं डेब्ट आधारित फंडों में दीर्घावधिक पूँजीगत लाभ पर बिना इंडेक्सेशन के 10% और इंडेक्सेशन के साथ 20% कर देय होता है। इंडेक्सेशन में खरीद मूल्य का मुद्रास्फीति के साथ समायोजन होता है।
लार्ज-कैप फंड भी नये निवेशकों के लिए सही कहे जाते हैं, क्योंकि इनका तकरीबन 80% कोष शीर्ष 50 से 100 कंपनियों में समाहित होता है, जो बाजार के झटकों से थोड़ा कम प्रभावित होती हैं। दीर्घावधि में पूँजीगत लाभ से इनका कर मुक्त होना और विविधीकृत पोर्टफोलिओ इन्हें और आकर्षक बना देता है। नये निवेशक इंडेक्स फंडों पर भी गौर कर सकते हैं, जिनका पोर्टफोलिओ किसी सूचकांक पर आधारित होता है।
कर बचत को ध्यान में रख कर भी उचित फंड का चयन किया जा सकता है। इन्हें इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) कहा जाता है। अधिकांश खुदरा निवेशकों को ये खूब लुभाते हैं। आयकर की धारा 80 सी के तहत इनका कर मुक्त होना इनकी सबसे बड़ी खूबी मानी जाती है। हालाँकि यह ध्यान रखें कि केवल कर बचाने के लिए इनका चयन न करें। अपनी पूरी निवेश योजना को ध्यान में रख कर ऐसे ईएलएसएस का चुनाव करें कि जो आपको अच्छा प्रतिफल दे। अच्छा प्रतिफल पहला उद्देश्य होना चाहिए, कर बचत तो अतिरिक्त प्रोत्साहन है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)