लगभग दो साल पहले भारतीय शेयर बाजार ने एक नया रिकॉर्ड स्तर छुआ था। उस रिकॉर्ड स्तर से फिर आगे निकलने की ख्वाहिश बाजार में बनी रही है। पर लगता है कि बाजार ने इस ख्वाहिश को जरा दूर खिसका लिया है।
हमारे सहयोगी समाचार पोर्टल शेयर मंथन की ओर से भारतीय बाजार के दिग्गजों के इस सबसे बड़े सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि बाजार अगले साल भर में भी अपने पुराने शिखर को छू पाने की बात नहीं सोच पा रहा।
भारतीय शेयर बाजार के लिए साल 2016 काफी उतार-चढ़ावों के बीच बिना किसी खास नफा-नुकसान के निकल गया। साल 2015 में सेंसेक्स करीब 5% गिरा था, जबकि साल 2016 में सेंसेक्स 1.95% बढ़ा है। दो वर्षों की सुस्ती के बाद अब साल 2017 के आरंभ में बाजार के सामने एक बड़ी अनिश्चित-सी स्थिति है। विमुद्रीकरण या नोटबंदी ने हर विश्लेषक के अनुमानों को उलट-पुलट दिया है। इतना तो सभी मान रहे हैं कि इसके चलते अर्थव्यवस्था और कंपनियों की आय को एक तात्कालिक झटका लगेगा। यह कितना गहरा होगा और कब तक इससे उबरने में सफलता मिलेगी, इसे लेकर लोगों की राय बँटी हुई है। पर दूसरी सहमति इस बात पर दिखती है कि लंबी अवधि में इस कदम का अर्थव्यवस्था और बाजार को फायदा ही मिलेगा।
नये सर्वेक्षण के नतीजों को रखने से पहले देख लेते हैं कि जनवरी 2016 और जुलाई 2016 के अनुमान क्या थे और परिणाम कैसे रहे। जनवरी 2016 के सर्वेक्षण में विश्लेषकों का औसत अनुमान सामने आया था कि दिसंबर 2016 तक सेंसेक्स 30,028 पर होगा। यह लक्ष्य मार्च 2015 में बने शिखर 30,025 के बिल्कुल पास का था। इस तरह साल 2016 के दौरान सेंसेक्स में 15% वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। मगर फरवरी 2016 में आयी तीखी गिरावट के बाद जुलाई 2016 के सर्वेक्षण में औसत अनुमान यह था कि दिसंबर 2016 तक सेंसेक्स 28,471 पर होगा। मगर दिसंबर 2016 के अंत में सेंसेक्स 26,626 पर बंद हुआ है। इसने साल 2016 में केवल 1.95% बढ़त दर्ज की है। निफ्टी 50 ने साल 2016 के दौरान 7,946 से 8,186 तक 240 अंक या 3.02% की बढ़त दर्ज की। यानी साल भर पहले की उम्मीदें हों या छह महीने पहले के, दिसंबर 2016 के अंत में बाजार दोनों के ही आसपास नहीं है। लेकिन इससे पहले सितंबर 2016 में जरूर सेंसेक्स 29,000 के कुछ ऊपर तक गया था। इस लिहाज से जुलाई 2016 के सर्वेक्षण का छमाही लक्ष्य पूरा हुआ माना जा सकता है।
नोटबंदी के असर और जीएसटी पर नजर
ज्यादातर विश्लेषकों की नजरें इस बात पर भी टिकी हैं कि जीएसटी कब से और किस तरह लागू होता है। जीएसटी उनकी उम्मीद भी है और चिंता भी। चिंता यह है कि अगर जीएसटी लागू होने में देरी हुई, या लागू होने में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं रहा तो यह बाजार के लिए नकारात्मक हो सकता है। लेकिन उम्मीद यह है कि इसके ठीक से लागू हो जाने पर अर्थव्यवस्था को इससे बल मिलेगा।
आश्चर्यजनक रूप से पाँच राज्यों के विधान-सभा चुनावों की चर्चा ज्यादा विश्लेषकों ने नहीं की है। हालाँकि कुछेक ऐसी टिप्पणियाँ जरूर मिली हैं कि अगर इन चुनावों में भाजपा को झटका लगा तो इसका शेयर बाजार पर भी नकारात्मक असर होगा। पर फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि ये चुनाव बाजार की सोच में बहुत ज्यादा हावी हैं। मोटे तौर पर सबकी नजरें नोटबंदी के अर्थव्यवस्था एवं कंपनियों की आय पर होने वाले असर पर हैं। इस लिहाज से सब यह देखना चाहते हैं कि 2016-17 की तीसरी एवं चौथी तिमाही के कारोबारी नतीजे कैसे रहते हैं। हालाँकि यह दिलचस्प है कि साल 2016-17 और इसके अगले साल में विकास दर के जो संभावित आंकड़े सामने आये हैं, वे नोटबंदी के बाद कई संस्थाओं की ओर से पेश अनुमानित आँकड़ों की तुलना में ज्यादा सकारात्मक हैं। यानी बाजार भविष्य को लेकर बहुत भयभीत भी नहीं है।
पर इन स्थितियों में शेयर मंथन और निवेश मंथन की ओर से किये गये सर्वेक्षण में यह साफ दिखता है कि लोगों ने निकट भविष्य के लिए शेयर बाजार से अपनी उम्मीदों को घटा लिया है। हर छह महीने के अंतराल पर होने वाले इस सर्वेक्षण से बाजार के उत्साह में आने वाले उतार-चढ़ाव का साफ पता चल रहा है।
जहाँ जुलाई 2015 के सर्वेक्षण में बाजार की निगाहें सेंसेक्स 32,000 पर पहुँचने की ओर टिक गयी थीं, वहीं जनवरी 2016 के सर्वेक्षण में बाजार ने अपनी आशा इस बात पर टिका ली थी कि 30,000 के स्तर को फिर से हासिल कर लिया जाये। जुलाई 2016 में भी बाजार इसी आशा के साथ दिखा कि अगले साल भर में 30,000 के पिछले शिखर को फिर से छूने में सफलता मिलेगी। मगर इस बार के सर्वेक्षण में बाजार की यह आशा भी डोलती दिख रही है।
छह महीने में 4% की धीमी बढ़त
जनवरी 2017 के इस सर्वेक्षण के मुताबिक अगले छह महीनों में सेंसेक्स जरा धीमी गति से ही आगे बढ़ेगा। विश्लेषकों का औसत अनुमान यह सामने आया है कि जून 2017 के अंत तक सेंसेक्स 27,655 पर होगा, यानी इन छह महीनों में केवल 3.86% की बढ़त हासिल हो सकेगी। अब से छह महीने पहले जुलाई 2016 के सर्वेक्षण को देखें, तो तब विश्लेषकों का आकलन था कि जून 2017 में सेंसेक्स को 30,402 पर होना चाहिए। यानी इन छह महीनों में ही सेंसेक्स के लिए बाजार की आशाएँ लगभग 9% नीचे आ गयी हैं।
इस बार सबसे ज्यादा 56.8% विश्लेषकों का जवाब है कि जून 2017 के अंत में सेंसेक्स 26,001 से 28,000 के बीच रहेगा। इसके बाद 25% ने कहा है कि यह 28,001 से 30,000 के बीच रह सकता है। छह महीने पहले के सर्वेक्षण में स्थिति काफी अलग थी। तब 40.9% विश्लेषकों की राय थी कि जून 2017 के अंत तक सेंसेक्स को 28,001-30,000 के दायरे में होना चाहिए और 45.4% का तो कहना था कि यह 30,000 से भी ऊपर होगा।
निफ्टी जून 2017 तक 8,500 के ऊपर
निफ्टी 50 के बारे में भी विश्लेषक इसी तरह से ठंडा अनुमान लेकर चल रहे हैं। 30 दिसंबर 2016 के बंद स्तर 8,146 की तुलना में 30 जून 2017 तक निफ्टी 4.23% बढ़ कर 8,532 पर पहुँचने का अनुमान इस बार के सर्वेक्षण में सामने आया है। सबसे ज्यादा 42.2% जानकारों ने कहा है कि निफ्टी जून 2017 के अंत में 8,501 से 9000 के बीच होगा। इसके बाद 37.8% ने राय दी है कि छह महीने बाद यह 8,001 से 8,500 के बीच ही रहेगा। वहीं जुलाई 2016 के पिछले सर्वेक्षण में जून 2017 के लिए निफ्टी का औसत लक्ष्य 9,148 का आया था। तब 40.9% विश्लेषकों का कहना था कि जून 2017 में निफ्टी 9,001 से 9,500 के बीच होगा। जाहिर है कि इन छह महीनों में बाजार ने अपने अनुमानों को काफी नीचे कर लिया है।
2017 में 9-10% की बढ़त
हमारा ताजा सर्वेक्षण बता रहा है कि बाजार साल 2017 के दौरान 9-10% की बढ़त का अनुमान ले कर चल रहा है। सेंसेक्स का दिसंबर 2017 का औसत लक्ष्य 29,320 का आया है। यानी इस साल सेंसेक्स में लगभग 2,700 अंक या 10.1% की बढ़त दर्ज होने की उम्मीद दिखती है।
लगभग दो-तिहाई विश्लेषकों ने कहा है कि दिसंबर 2017 में सेंसेक्स को 28,001 से 30,000 के बीच होना चाहिए। वहीं 20.0% जानकारों के मुताबिक साल भर में सेंसेक्स 30,001-32,000 के दायरे में कहीं होना चाहिए, जबकि 32,000 से ज्यादा ऊँचे स्तर की भविष्यवाणी तो केवल 6.7% लोगों ने ही की है। दूसरी ओर, 8.9% विश्लेषक ऐसे हैं, जो साल भर बाद सेंसेक्स को 26,000 या इससे भी नीचे के स्तर पर फिसलता देख रहे हैं।
इसकी तुलना में छह महीने के सर्वेक्षण में सेंसेक्स को तब से साल भर बाद यानी जून 2017 में 32,000 से ऊपर देखने वालों की संख्या 22.7% थी। तब 12 महीने में सेंसेक्स 30,001-32,000 के बीच होने की उम्मीद 22.7% लोगों ने जतायी थी। यानी अधिकांश ऐसे लोग, जो तब मान रहे थे कि जून 2017 तक ही सेंसेक्स 30,000 के ऊपर कहीं होगा, वे अब देख रहे हैं कि दिसंबर 2017 तक भी सेंसेक्स 30,000 से नीचे ही अटका रह सकता है।
साल भर में निफ्टी 9000 के नीचे ही
ताजा सर्वेक्षण का औसत अनुमान बताता है कि निफ्टी 50 साल 2017 के अंत में 9,000 के थोड़ा नीचे ही अटका रह सकता है। साल भर बाद का औसत लक्ष्य 8,964 का सामने आया है, जो 30 दिसंबर 2016 के बंद स्तर 8,186 की तुलना में 9.5% की बढ़त का अनुमान प्रस्तुत करता है। सबसे ज्यादा 40.4% विश्लेषक मान रहे हैं कि दिसंबर 2017 के अंत में निफ्टी 8,501-9,000 के दायरे में होगा। इसके बाद 34.0% विश्लेषकों का आकलन है कि तब तक यह 9,001-9,500 के दायरे में कहीं पहुँचेगा। 9,500 से ऊपर का लक्ष्य देने वालों की संख्या 14.9% है, जबकि दूसरी ओर 8,000 या इससे भी नीचे फिसलने की संभावना 8.5% विश्लेषकों ने रखी है।
हमने हर बार की तरह विश्लेषकों से यह भी पूछा कि अगले 12 महीनों में निफ्टी ऊपर कहाँ तक जा सकता है यानी साल का शिखर कहाँ होगा, और यह नीचे कहाँ तक फिसल सकता है, यानी तलहटी कहाँ बनेगी। यह पिछले प्रश्न की तरह साल भर बाद का लक्ष्य नहीं है, बल्कि साल के दौरान कभी भी सबसे ऊँचे और सबसे नीचे स्तर की संभावना को देखने का प्रयास है। इस सवाल के जवाब में निफ्टी का साल 2017 का दायरा ऊपर 9,200 से लेकर नीचे 7,500 तक यानी लगभग 700 अंकों का बनता दिख रहा है।
साल के संभावित शिखर का औसत अनुमान 9,191 का आया है, जो दिसंबर 2016 के अंत की तुलना में लगभग 1,000 अंक या 12.3% की वृद्धि की संभावना दिखाता है।
सबसे ज्यादा 39.1% जानकारों ने अनुमान जताया है कि साल 2017 में निफ्टी का शिखर 9,001-9,500 के बीच होगा। मगर इससे थोड़े ही कम, 37.0% विश्लेषकों के मुताबिक यह शिखर 8,501-9,000 के बीच ही रहना चाहिए। केवल 10.9% विश्लेषक आशा कर रहे हैं कि इस साल का शिखर 9,500 से भी ऊपर कहीं बनेगा।
साल 2017 में संभावित तलहटी का औसत अनुमान 7,480 का है। इसके आधार पर इस साल निफ्टी में ज्यादा-से-ज्यादा लगभग 700 अंक या 8.6% तक की गिरावट आ सकती है। आधे से ज्यादा, 53.7% जानकारों ने संभावित तलहटी 7,501-8,000 के बीच बतायी है। इसके बाद 7,001-7,500 के बीच संभावित तलहटी बताने वालों की संख्या 36.6% है।
तिमाही नतीजों में धीमी बढ़त या गिरावट
वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही के बीच में ही नोटबंदी की घोषणा हुई। यह आम धारणा है कि इसके चलते आर्थिक गतिविधियों को लगने वाले झटके का सबसे ज्यादा असर इसी तिमाही के आँकड़ों में दिखेगा। अधिकांश विश्लेषकों का कहना है कि तीसरी तिमाही में कंपनियों की आय में या तो गिरावट आयेगी, या इसमें केवल 0-5% की धीमी बढ़त दिख सकेगी। सबसे ज्यादा 46.9% जानकारों ने कहा है कि इसमें 0-5% की बढ़त रहेगी, जबकि नकारात्मक वृद्धि यानी आय पहले से भी घट जाने की आशंका 28.6% विश्लेषकों की है। तिमाही आय में 5% से ज्यादा वृद्धि का आकलन 10.2% विश्लेषकों का ही है, जबकि 14.3% लोगों ने इस पर अपनी राय नहीं दी है।
अगले छह महीनों में बाजार के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक कौन-सा होगा, इस सवाल पर 30.6% विश्लेषकों ने भारत की विकास दर (जीडीपी) के विकल्प को चुना है। वहीं 16.3% विश्लेषकों के मुताबिक सबसे ज्यादा असर अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तिमाही के कारोबारी नतीजों का होगा। दूसरी ओर 26.5% विश्लेषकों ने कच्चे तेल और वैश्विक अर्थव्यवस्था की चाल को ज्यादा महत्व दिया है।
इस बार 44.9% विश्लेषकों का कहना है कि अगले 12 महीनों में भारतीय बाजार की चाल वैश्विक बाजारों के अनुरूप ही रहेगी, जबकि वैश्विक बाजारों से तेज चाल रहने की उम्मीद 22.4% को है और कमजोर प्रदर्शन की आशंका 30.6% ने जतायी है। छह महीने के सर्वेक्षण में 85.1% विश्लेषकों का जबरदस्त बहुमत भारतीय बाजार को वैश्विक बाजारों से तेज देख रहा था, जबकि कमजोर प्रदर्शन की आशंका केवल 2.1% ने जतायी थी। यह बात भी इन छह महीनों में डगमगाये आत्मविश्वास को दिखाती है।
हालाँकि सर्वेक्षण का औसत अनुमान दिसंबर 2017 के लक्ष्य को 30,000 से थोड़ा नीचे दिखा रहा है, मगर 46.9% विश्लेषकों के मुताबिक साल 2017 में 30,000 के स्तर को फिर से छूना संभव हो सकेगा।
वहीं 40.8% लोगों की राय है कि ऐसा साल 2018 में हो सकेगा। सेंसेक्स 40,000 पर कब पहुँच सकेगा, इस बारे में सबसे ज्यादा 40.8% जानकारों ने साल 2020 तक ऐसा होने की उम्मीद रखी है। पर साल 2018 तक ही ऐसा हो सकेगा, ऐसा सोचने वाले केवल 12.2% हैं। गौरतलब है कि छह महीने पहले साल 2018 में इस मुकाम पर पहुँचने की उम्मीद 30.4% विश्लेषकों ने रखी थी।
वहीं 50,000 का ऐतिहासिक आँकड़ा भी विश्लेषकों की नजर में कुछ और दूर हो गया है। दरअसल यह प्रश्न अब उनके लिए बड़ा अनिश्चित-सा हो गया है। जहाँ छह महीने पहले केवल 13.0% विश्लेषक कह रहे थे कि 50,000 तक सेंसेक्स पहुँचने का समय बताना मुश्किल है, वहीं अब इनकी संख्या बढ़ कर 40.8% हो गयी है। वहीं साल 2020 तक ही यह ऐतिहासिक स्तर आ जाने की बात पिछले सर्वेक्षण के 23.9% विश्लेषकों की तुलना में अब केवल 10.2% लोग कह रहे हैं। साल 2025 तक इस स्तर की उम्मीद करने वालों की संख्या भी 28.3% से थोड़ी घट कर 24.5% रह गयी है। इसी तरह साल 2030 तक ऐसा होने की उम्मीद भी अब 21.7% के बदले केवल 18.4% जानकारों को है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)